BJP Working President Nitin Naveen: क्या ये मोदी–शाह की जीत है या RSS की पकड़ कमजोर होने का संकेत?

BJP Working President Nitin Naveen: बिहार सरकार में मंत्री और बांकीपुर से लगातार पाँच बार विधायक चुने गए नितिन नबीन को भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। पार्टी महासचिव अरुण सिंह द्वारा जारी पत्र में इस नियुक्ति की पुष्टि की गई। 45 वर्ष के नितिन नबीन की यह नियुक्ति तत्काल प्रभाव से लागू होगी।

कौन हैं नितिन नबीन? 

  • बिहार सरकार में पथ निर्माण मंत्री

  • बीजेपी के छत्तीसगढ़ प्रभारी

  • बांकीपुर (पटना) से पाँच बार के विधायक

  • 2008 में BJYM राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य

  • विवादों से दूर रहने वाली छवि

उनकी उम्र मात्र 45 वर्ष है, और ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि एक युवा नेता वरिष्ठ नेताओं से भरी पार्टी में अपनी भूमिका कैसे निभाएँगे।

बीजेपी अध्यक्ष पद पर सवाल—तीन साल से बिना चुनाव

जेपी नड्डा का कार्यकाल लगभग तीन साल पहले समाप्त हो चुका है। उसके बाद से पार्टी में नया अध्यक्ष नहीं चुना गया। यह पहला मौका है जब इतने लंबे समय तक अध्यक्ष पद खाली रहा हो।इसी वजह से बीजेपी पर यह सवाल भी उठ रहा था कि “देश की सबसे बड़ी पार्टी अपना अध्यक्ष क्यों नहीं चुन पा रही है?” नितिन नबीन की नियुक्ति ने कई लोगों को चौंकाया है, लेकिन इसे कई राजनीतिक संकेतों से भी जोड़कर देखा जा रहा है।

उम्र—कमजोरी या ताकत?

बीजेपी संविधान के अनुसार अध्यक्ष पद के लिए 15 साल की सदस्यता जरूरी है, जो नितिन नबीन पूरी करते हैं। बीजेपी नेता संजय जायसवाल कहते हैं—“उम्र कोई मुद्दा नहीं। वे पाँच बार विधायक रहे हैं और छत्तीसगढ़ में पार्टी को बड़ी जीत दिलाई है।” वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण मानते हैं कि बीजेपी इसे ‘युवा नेतृत्व’ की ताकत के रूप में भी पेश कर सकती है।

बीजेपी या आरएसएस: किसकी जीत मानें?

बीजेपी और आरएसएस के संबंधों और प्रभाव का सवाल हमेशा चर्चा में रहता है। वरिष्ठ विश्लेषक ब्रजेश शुक्ला कहते हैं— “यह वह दौर नहीं है जब आरएसएस की पसंद अध्यक्ष बनती हो। अब मोदी–शाह की पसंद ही सबसे भारी पड़ती है।” नितिन गडकरी आरएसएस के करीबी थे, लेकिन नितिन नबीन को उतना संघ-निकट नहीं माना जाता। विश्लेषकों के अनुसार यह नियुक्ति यह दिखाती है कि मोदी–शाह का दबदबा संगठनात्मक नियुक्तियों में सबसे निर्णायक है।

नितिन नबीन और मोदी की पुरानी नज़दीकियाँ

2010 की एक घटना को आज भी याद किया जाता है, जब पटना में नरेंद्र मोदी की फोटो वाले एक विज्ञापन ने बिहार की राजनीति में खलबली मचा दी थी। इस विज्ञापन में नितिन नबीन शामिल थे, और नीतीश कुमार ने नाराज होकर बीजेपी नेताओं के लिए रखा गया डिनर रद्द कर दिया था। कई विश्लेषक इसे उनकी “मोदी नज़दीकी” का शुरुआती संकेत मानते हैं।

टाइमिंग—सियासी संदेश?

नितिन नबीन की नियुक्ति उसी दिन हुई जब कांग्रेस ने रामलीला मैदान में ‘वोट चोरी’ के आरोपों के साथ बड़ी रैली की। विशेषज्ञों के अनुसार बीजेपी “हेडलाइन मैनेजमेंट” में माहिर है। कई लोग मानते हैं कि कांग्रेस की रैली से मीडिया का फोकस हटाकर पूरा नैरेटिव अब नितिन नबीन कौन हैं? पर आ गया।

बिहार से जुड़े राजनीतिक संकेत

बीजेपी में यह पहली बार है कि बिहार से किसी को इतना बड़ा पद मिला है। कुछ विश्लेषक इसे “नीतीश कुमार के बाद बिहार में नेतृत्व संभावनाओं” की तैयारी मानते हैं। ब्रजेश शुक्ला का मानना है— “बीजेपी दूर की सोचती है। कायस्थ समुदाय बीजेपी का स्थायी वोटर रहा है। यह नियुक्ति जातिगत संदेश भी दे सकती है।”

वर्किंग प्रेसिडेंट: परीक्षा अभी बाकी

विशेषज्ञों का मानना है कि नितिन नबीन को पहले कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर परखा जाएगा। अगर वे संगठन में तालमेल और चुनावी रणनीति पर सफल रहते हैं, तो अगले डेढ़ महीने में उन्हें स्थायी अध्यक्ष भी बनाया जा सकता है।

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आने वाली चुनौतियाँ

नितिन नबीन के सामने कई बड़े मोर्चे हैं—

  • वरिष्ठ नेताओं के साथ तालमेल

  • पश्चिम बंगाल व उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव

  • विपक्ष के तेवर और आरोप

  • पार्टी के अंदर बदलावों का प्रबंधन

उनकी नियुक्ति चाहे किसी भी शक्ति केंद्र की जीत हो—बीजेपी नेतृत्व की या संघ की—लेकिन यह साफ है कि नितिन नबीन को आने वाले महीनों में खुद को साबित करने की बड़ी चुनौती होगी।

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