
Bihar Election 2025. बिहार की राजनीति एक बार फिर उस मोड़ पर पहुंच चुकी है, जहां हर नजर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर टिकी है। राजनीतिक हलकों में यह सवाल जोरों पर है कि क्या यह नीतीश की आखिरी पारी होगी या वह एक बार फिर विपक्ष को मात देने में कामयाब रहेंगे? बिहार की राजनीति में नीतीश का किरदार अब केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक कहानी बन चुका है – वह कहानी, जिसमें सत्ता की डोर कई बार पलटी, लेकिन चेहरा वही रहा।
फरवरी 2005 के विधानसभा चुनाव में जब एनडीए ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया, तब बिहार में राजनीति की दिशा ही बदल गई। उसी चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी का भावनात्मक भाषण – मुझे मेरा किसलय लौटा दो – ने पूरे प्रदेश में राजनीतिक माहौल को बदल दिया था। लालू-राबड़ी शासन की साख उस एक अपील से हिल गई थी। उसके बाद सत्ता परिवर्तन हुआ और बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय लिखा गया – नीतीश कुमार युग।
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कहा जाता है कि नीतीश कुमार के पास ऐसी राजनीतिक घड़ी है, जो क्लॉकवाइज और एंटीक्लॉकवाइज दोनों दिशा में घूमती है। वे बीजेपी के साथ हों तो भी उन पर सांप्रदायिकता का आरोप नहीं लगता और आरजेडी के साथ हों तो भ्रष्टाचार का भी नहीं। यही वजह है कि बिहार की राजनीति में वे हमेशा केंद्र में रहते हैं। मुख्यमंत्री वही रहते हैं, बस विपक्ष बदलता रहता है।
टीना फैक्टर और नीतीश की ताकत
बिहार में कहा जाता है – या तो आप उनसे प्यार कर सकते हैं या नफरत लेकिन उन्हें अनदेखा नहीं कर सकते हैं। राज्य में तीन प्रमुख राजनीतिक ताकतें हैं — जेडीयू, बीजेपी और आरजेडी। इन तीन में से दो का गठजोड़ जीत की गारंटी बन जाता है। नीतीश कुमार इसी समीकरण के सबसे अहम ध्रुव हैं। यही वजह है कि उन्हें बिहार का टीआईएनए (देयर इज नो अल्टरनेटिव) फैक्टर कहा जाता है।
मुख्यमंत्री पद को लेकर अनिश्चितता
इस बार एनडीए और महागठबंधन के बीच मुकाबला पहले से ज्यादा पेचीदा है। जेडीयू और बीजेपी बराबर सीटों पर लड़ रहे हैं, जबकि आरजेडी ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा और मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किया है। हालांकि, बीजेपी ने अभी तक स्पष्ट रूप से नीतीश कुमार के नाम की पुष्टि नहीं की है। यही दुविधा इस चुनाव को और रोचक बना रही है।
महागठबंधन में अंतर्विरोध, तेजस्वी की चुनौती
महागठबंधन में सीटों को लेकर खींचतान ने तेजस्वी यादव की छवि को नुकसान पहुंचाया है। मुकेश सहनी की प्रतिबद्धता पर भी सवाल उठे हैं। वहीं, नीतीश कुमार अब भी प्रशासनिक अनुभव और विश्वसनीयता के प्रतीक माने जाते हैं।
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बिहार की राजनीति का यह चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि एक युग के आकलन का चुनाव है। यह तय करेगा कि “पलटू राम” कहे जाने वाले नीतीश कुमार एक बार फिर टीना फैक्टर साबित होंगे या तेजस्वी यादव नई कहानी लिख पाएंगे।



