Beirut: लेबनान के चर्चित उपन्यासकार इलियास खौरी नहीं रहे। कई माह से बीमार खौरी ने 76 वर्ष की आयु में आखिरी सांस ली। लेखक खौरी अपने पीछे साहित्य की लंबी विरासत छोड़ गए हैं। उनकी यह विरासत संघर्ष और विस्थापन के बीच मानवीय स्थिति पर गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
डेली स्टार लेबनान की खबर के अनुसार, फिलिस्तीन के संघर्ष पर उनके कई उपन्यास और निबंध सुर्खियों पर रहे हैं। उन्हें मजबूत राजनीतिक विचारों के लिए जाना जाता था। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रबलतम पक्षधर खौरी ने मध्य पूर्वी तानाशाही और फिलिस्तीन में इजराइल की नीतियों की कड़ी आलोचना की। बीमारी के दौरान भी उन्होंने लेखन जारी रखा।
पिछले साल सात अक्टूबर को इजराइल और हमास के मध्य छिड़े युद्ध के कुछ दिनों बाद उन्होंने अल-कुद्स ए-अरब दैनिक में इट्स फिलिस्तीन शीर्षक से एक लेख लिखा। इसमें उन्होंने गाजा को “सबसे बड़ी खुली हवा वाली जेल” के रूप में वर्णित किया। 1948 में बेरूत में जन्मे खौरी ने लेबनान विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी करने के बाद पेरिस विश्वविद्यालय से सामाजिक इतिहास में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
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उपन्यास खौरी ने अन-नाहर और अस-सफीर जैसे प्रमुख लेबनानी समाचार पत्रों के सांस्कृतिक खंडों का संपादन किया। फिलिस्तीन अध्ययन पत्रिका के प्रधान संपादक के रूप में कार्य किया। खौरी की साहित्यिक कृतियों में लिटिल माउंटेन और बाब अल-शम्स (सूर्य का द्वार) प्रमुख हैं। उनके उपन्यासों का हिब्रू सहित कई भाषाओं में अनुवाद किया ग। खौरी ने न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, कोलंबिया, प्रिंसटन और लंदन विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में भी पढ़ाया।