
SIR : देशभर में मतदाता सूची दस्तावेज सत्यापन (एसआईआर) की सख्त प्रक्रिया शुरू होने के बाद कई राज्यों में एक दिलचस्प प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। वर्षों से भारत के विभिन्न शहरों में बिना दस्तावेज के रह रहे अवैध बांग्लादेशी नागरिक अचानक अपने ठिकानों से गायब हो रहे हैं और पूर्वी सीमा की ओर लौटने की कोशिश में पकड़े जा रहे हैं। यह रिवर्स माइग्रेशन न केवल भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण संकेत है, बल्कि सीमा प्रबंधन और शहरी प्रशासन की कमजोरियों को भी उजागर करता है।
सबसे ताजा घटनाक्रम उत्तर 24 परगना की हाकिमपुर सीमा चौकी का है, जहां बीते दिनों असामान्य हलचल दर्ज की गई। बीएसएफ की 143वीं बटालियन ने नदी किनारे संदिग्ध गतिविधि देखी और तलाशी के दौरान सैकड़ों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को रोका, जो कथित तौर पर भारत से बांग्लादेश लौटने की फिराक में थे। अगले 24 घंटों में यह संख्या 500 से ऊपर पहुंच गई, जो अपनी मामूली पोटलियों और कंबलों के साथ जीरो लाइन के पास डेरा डाले हुए थे।
ये वे लोग हैं, जो कई वर्षों से कोलकाता और उसके उपनगरों बिराती, मध्यमग्राम, राजारहाट, न्यू टाउन और सॉल्ट लेक में घरेलू काम, दिहाड़ी मजदूरी या निर्माण कार्यों में लगे हुए थे। किसी के पास पासपोर्ट, वीजा या वैध पहचान पत्र नहीं मिला। बीएसएफ अधिकारियों के मुताबिक हाल के सप्ताहों में इस तरह सीमा पर लौटने की कोशिशें तेजी से बढ़ी हैं। इसी महीने की शुरुआत में तराली बॉर्डर से भी 94 लोगों को इसी तरह पकड़ा गया था।
अवैध प्रवासियों को हिरासत में लिया गया
हालांकि सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतनी बड़ी संख्या में अवैध प्रवासी अचानक सीमा तक क्यों पहुंच रहे हैं? हिरासत में लिए गए कई लोगों ने मीडिया को बताया कि एसआईआर दस्तावेज सत्यापन के चलते उन्हें आशंका हो गई कि उनके नकली या अवैध पहचान संबंधी जानकारी उजागर हो जाएगी। एक महिला ने कहा कि मैं 10 साल से घरेलू काम कर रही हूं, पर कोई कागज़ नहीं है। अब डर लग रहा है, इसलिए लौट रही हूँ। यह भावना हजारों लोगों में फैले भय को दर्शाती है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि एसआईआर की बढ़ती सख्ती ने अवैध प्रवास पर दबाव बनाया है, लेकिन यह रिवर्स माइग्रेशन केवल एक कारण का परिणाम नहीं है। शहरी समुदायों का बढ़ता दबाव, कड़े किराया-सत्यापन, पहचान जांच और पुलिस की सक्रियता भी भूमिका निभा रही है।
बिना पहचान के लिए कैसे रह पाए?
सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि ऐसे लोग वर्षों तक महानगरों में बिना पहचान के कैसे रह पाए? यह स्थिति दो बड़ी विफलताओं की ओर संकेत करती है – पहली, सीमा प्रबंधन की कमजोरी और दूसरी, शहरी तंत्र में पहचान सत्यापन की ढिलाई। महानगरों में किराया समझौतों, मजदूर पंजीकरण और घरेलू कार्यगार सत्यापन के कमजोर ढांचे ने अवैध प्रवासियों को वर्षों तक अदृश्य जीवन जीने का मौका दिया।
इसके अलावा, बड़े समूहों में लौटने की कोशिश यह भी दिखाती है कि सीमापार सक्रिय नेटवर्क अभी भी मौजूद हैं। ये गिरोह न सिर्फ लोगों को भारत में घुसने में मदद करते हैं बल्कि परिस्थितियां कठिन होने पर उन्हें वापस पहुँचाने के लिए भी समान रूप से सक्रिय रहते हैं।
एसआईआर जैसी प्रक्रियाएं अब नियमित होनी चाहिए
इस घटनाक्रम के बाद सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि एसआईआर जैसी प्रक्रियाएं अब नियमित होनी चाहिए। सीमा पर तकनीकी निगरानी – जैसे सेंसर, कैमरे और यूएवी की तैनाती बढ़ाना भी आवश्यक है, खासकर नदी और दलदल वाले इलाकों में जहां पार करना आसान माना जाता है। साथ ही शहरी क्षेत्रों में किराया-केवाईसी, श्रम पंजीकरण, और भुगतान प्रणाली में पहचान अनिवार्यता से अवैध नेटवर्क को काफी कमजोर किया जा सकता है।
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हाकिमपुर सीमा पर उमड़ी भीड़ किसी एक निर्णय का परिणाम नहीं, बल्कि भारत की सुरक्षा और प्रशासनिक तंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी है। यह स्पष्ट है कि दस्तावेज़ सत्यापन की सख्ती असर दिखा रही है, लेकिन अवैध नेटवर्क अभी भी सक्रिय हैं और यह भविष्य की नीति निर्माण के लिए सबसे बड़ा संकेत है।



