Ayodhya Ram Mandir Dhwajarohan 2025 : अयोध्या में धर्मध्वजा पुनर्स्थापन के बहुआयामी संदेश

Ayodhya Ram Mandir Dhwajarohan 2025 : अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर धर्मध्वजा का पुनर्स्थापन स्वाभाविक रूप से एक धार्मिक-सांस्कृतिक घटना है, परंतु इसके निहितार्थ केवल आध्यात्मिक दायरे में सीमित नहीं हैं। यह वह क्षण है जब आस्था का प्रतीक राजनीति के गोलार्ध में प्रवेश करता है, और देश की वैचारिक दिशा को पुनर्परिभाषित करता है। ऐसे प्रतीक आज के भारत में सत्ता-संवाद, जन-मानस और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा तीनों पर समान रूप से प्रभाव डालते हैं।

धर्मध्वजा का आरोहण भारतीय जनता पार्टी के उस दीर्घकालिक सांस्कृतिक एजेंडे की सार्वजनिक और औपचारिक मान्यता जैसा है, जिसे वह दशकों से राजनीतिक विमर्श में स्थापित करने का प्रयास करती रही है। यह आयोजन केवल धार्मिक श्रद्धा नहीं, बल्कि ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ की उस परिकल्पना को भी प्रमाणित करता है जिसे भाजपा और संघ परिवार वैचारिक केंद्र में रखते आए हैं। इससे यह संदेश जाता है कि भारतीय राजनीति में सांस्कृतिक स्वर अब निर्णायक भूमिका में है और सरकार स्वयं को इस प्रवाह का स्वाभाविक नेतृत्वकर्ता प्रस्तुत कर रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रत्यक्ष उपस्थिति, उनके द्वारा अनुष्ठान का संपादन और उसे राष्ट्रीय क्षण के रूप में प्रस्तुत करना इन सभी ने राजनीतिक नेतृत्व की वैधता को सांस्कृतिक वैधता के साथ जोड़ने का कार्य किया। यह संदेश स्पष्ट है कि वर्तमान राजनीतिक सत्ता स्वयं को केवल प्रशासनिक संरचना नहीं, बल्कि एक व्यापक सभ्यतागत पुनर्जागरण का वाहक दिखाना चाहती है। इस प्रतीकात्मक राजनीति के प्रभाव समाज के उन वर्गों तक भी पहुंचते हैं जो धार्मिक अथवा सांस्कृतिक बोध को राजनीतिक विकल्पों का आधार मानते हैं।

अयोध्या से आने वाले ऐसे प्रतीक विपक्ष के लिए कठिन चुनौती पेश करते हैं। धर्मध्वजा का पुनर्स्थापन जहां सत्ताधारी दल के लिए वैचारिक विजय का क्षण बनता है, वहीं विपक्ष के लिए यह प्रश्न खड़ा करता है कि क्या वह किसी समतुल्य सांस्कृतिक विमर्श को प्रस्तुत कर सकता है? अभी तक विपक्ष के पास न तो इस प्रतीक की आलोचना का विकल्प सुरक्षित है, न ही इसका कोई वैकल्पिक सांस्कृतिक आख्यान विकसित किया गया है। परिणामस्वरूप राजनीतिक संघर्ष सांस्कृतिक धरातल पर एकतरफा दिखाई देने लगता है।

धर्मध्वजा का पुनर्स्थापन आगामी चुनावों के संदर्भ में भी पढ़ा जा सकता है, किंतु यह केवल चुनावी रणनीति नहीं है। यह उन सामाजिक परिवर्तनों का संकेत है जिनमें आस्था, पहचान और राष्ट्रवाद के सूत्र अधिक कसकर जुड़ रहे हैं। आयोजन का पैमाना और उसका राष्ट्रीय प्रसारण बताता है कि सरकार इसे ‘नया सांस्कृतिक युग’ घोषित करने वाली घटना के रूप में स्थापित करना चाहती है। इससे व्यापक जनमानस में यह संदेश जाता है कि राष्ट्रीय पुनर्जागरण का वर्तमान दौर राजनीति से अधिक सांस्कृतिक क्रांति के रूप में देखा जाए।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह कदम ‘सभ्यतागत राष्ट्र’ (Civilizational State) के विचार को मजबूत करता है। यह नई विदेश-नीति की उस प्रवृत्ति से मेल खाता है जिसमें भारत अपनी प्राचीन सांस्कृतिक पहचान को राजनीतिक ब्रांडिंग के एक तत्व के रूप में प्रस्तुत करता है। इस घटना का सबसे गहरा प्रभाव जनता के मानस पर पड़ता है। राम मंदिर से जुड़ी सामूहिक स्मृतियां और सांस्कृतिक भावनाएं राजनीतिक चेतना को प्रभावित करती हैं। धर्मध्वज का आरोहण इस स्मृति को स्थाई राजनीतिक पूंजी में बदल देता है। एक ऐसा प्रतीक जो आने वाले वर्षों तक चुनावी रणनीतियों का आधार बन सकता है।

अयोध्या में धर्मध्वजा का पुनर्स्थापन धार्मिक-आस्था का महत्वपूर्ण क्षण है, पर इसकी राजनीतिक व्याख्याएं इससे कहीं अधिक गहरी और दूरगामी हैं। यह भारतीय राजनीति में उस बदलते दौर का प्रतीक है, जहां सांस्कृतिक प्रतीक सत्ता का वैचारिक आधार बनते जा रहे हैं, और जहां राजनीति, धर्म और पहचान का संगम नई शक्ति-संरचनाएं निर्मित कर रहा है।

यह ध्वजा केवल मंदिर के शिखर पर नहीं फहरा रहा, यह भारत की सामूहिक राजनीतिक कल्पना के केंद्र में भी ऊंचा उठता दिखाई देता है।

-प्रणय विक्रम सिंह

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