
Allahabad University Rajbhasha event- मोबाइल के इस युग में आज की युवा पीढ़ी शब्दों के अर्थ शब्दकोश में नहीं, बल्कि मोबाइल पर खोजती है। इससे शब्दों की उत्पत्ति और व्यंजना को समझना उनके लिए चुनौती बनता जा रहा है।” यह बात इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. मुश्ताक अली ने कही। वे विश्वविद्यालय के राजभाषा अनुभाग द्वारा आयोजित पाँच दिवसीय बेसिक प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत गुरुवार को प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे।
प्रो. अली ने कहा कि हिंदी एक समावेशी भाषा है, जिसने अंग्रेज़ी, उर्दू, पुर्तगाली सहित विभिन्न भाषाओं के शब्दों को सहर्ष स्वीकार किया है। उन्होंने कार्यालयी हिंदी और साहित्यिक हिंदी के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए बताया कि साहित्यिक हिंदी संवेदनात्मक और सर्जनात्मक होती है, जबकि कार्यालयी हिंदी में स्पष्टता, तथ्यात्मकता और निरवैयक्तिकता होनी चाहिए।
डिजिटल युग में हिंदी का बढ़ता प्रभाव: डॉ. नीलेश आनंद
दूसरे सत्र में इलाहाबाद विश्वविद्यालय आईसीटी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉ. नीलेश आनंद ने “समर्थ पोर्टल और ई-फाइलिंग में हिंदी के उपयोग” विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि समर्थ पोर्टल पर हिंदी को सहज स्वीकृत भाषा के रूप में स्वीकार किया गया है। इससे विश्वविद्यालय की डिजिटल कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और गति दोनों बढ़ेंगी।
डॉ. आनंद ने कहा, “समर्थ पोर्टल आपकी डिजिटल सर्विस बुक है। पेपरलेस प्रणाली से न केवल पर्यावरण संरक्षण होगा, बल्कि समय और लागत दोनों की बचत होगी।” उन्होंने बताया कि वेतन पर्ची, चिकित्सा बिल, छात्रावास आवंटन, शिक्षण शुल्क प्रतिपूर्ति सहित सभी प्रक्रियाएं समर्थ पोर्टल से ही संभव हैं।
नवीन नियुक्त कर्मचारियों पर विशेष ध्यान
कार्यक्रम के प्रारंभ में राजभाषा कार्यान्वयन समिति के संयोजक प्रो. कुमार वीरेंद्र ने बताया कि इस बार का प्रशिक्षण विशेष रूप से नवनियुक्त युवा कार्मिकों के लिए तैयार किया गया है। उन्होंने विषय विशेषज्ञों का स्वागत करते हुए राजभाषा के महत्व को रेखांकित किया।
कार्यक्रम में हिंदी अधिकारी प्रवीण श्रीवास्तव और हिंदी अनुवादक हरिओम कुमार ने स्मृति चिन्ह और पुस्तकें भेंट कर दोनों सत्रों के विशेषज्ञों का सम्मान किया। धन्यवाद ज्ञापन अंजली मिश्रा और धर्मेश कुमार ने संयुक्त रूप से किया।
रिपोर्ट: राजेश मिश्रा प्रयागराज