Allahabad High Court-समाज को न्याय मिले, इसलिए जमानत निरस्त करने व्यवस्थाः हाई कोर्ट

Allahabad High Court-इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक मामले में जमानत निरस्त करने का आदेश देते हुए कहा है कि कानून में ऐसी व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि पीड़ित को न्याय मिल सके। कोर्ट ने कहा, जमानत निरस्त करने का प्रावधान यह सुनिश्चित करने के लिए है कि पीड़ित के साथ न्याय हो और आरोपित को सबूतों से छेड़छाड़ करने से रोका जा सके।
यह आदेश न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की एकल पीठ ने आर्थिक अपराध से जुड़े मामले में प्रतिवादी राकेश शर्मा की जमानत निरस्त करते हुए दिया है।कोर्ट ने कहा, धारा 439(2) सीआरपीसी (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में धारा 483(3)) हाई कोर्ट को पहले से दी गई जमानत को निरस्त करने का अधिकार देती है।
मुकदमे से जुड़े संक्षिप्त तथ्य यह हैं कि अश्विनी कुमार अग्रवाल को राकेश शर्मा ने मुनाफे का लालच देकर रेत खनन परियोजना में दो करोड़ रुपये लगाने के लिए प्रेरित किया। जब उसने मुनाफा साझा नहीं किया तो ट्रोनिका सिटी थाने में 19 सितंबर 2021 को एफआईआर दर्ज कराई। उधर आरोपित को गाजियाबाद स्थित सत्र अदालत से एक नवंबर 2011 को जमानत मिल गई। इस आदेश को यह कहते हुए चुनौती दी गई कि आरोपित का आपराधिक इतिहास रहा है।

अतीत में गुंडा अधिनियम और यूपी गैंग्स्टर अधिनियम के तहत भी कार्रवाई की गई है। ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए जमानत दी थी कि आरोपित पैसे वापस कर देगा। याची अश्वनी कुमार अग्रवाल के अधिवक्ता ने कोर्ट को यह भी बताया कि आरोपित ने साजिश कर बलात्कार का झूठा केस भी उसके मुवक्किल के खिलाफ दर्ज करा दिया। तथ्यों पर समग्रता से विचार करने के उपरांत न्यायमूर्ति श्रीवास्तव ने कहा, जमानत आदेश में विवेक का प्रयोग नहीं किया गया। कोर्ट ने यह भी पाया कि आरोपित आर्थिक अपराध व जालसाजी के साथ जुड़ा है।

यह तथ्य पाते हुए कि अपीलार्थी पर बुलंदशहर न्यायालय में भी आरोपित और उसके गिरोह के सदस्यों ने हमला किया था, यह प्रकरण जमानत रद करने के लिए उपयुक्त माना।

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रिपोर्ट- राजेश मिश्रा।

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