
Allahabad High Court-इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चकबंदी के दौरान राजस्व अभिलेखों में कपट से विपक्षियों का नाम दर्ज करने के खिलाफ धारा 229बी उ प्र जमींदारी विनाश अधिनियम के तहत स्वामित्व घोषित करने की मांग में दाखिल याची के वाद को पोषणीयता पर राजस्व अदालतों के फैसले पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है और कहा है कि केवल आरोप लगाने मात्र से कपट नहीं होता सबूतों से साबित करना होता है।
कोर्ट ने कहा चकबंदी अधिनियम की धारा 49के अंतर्गत धारा 229बी का वाद पोषणीय नहीं है।और याचिका खारिज कर दी।
यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश पाठक ने राजकुमार दूबे की याचिका पर दिया है। याचिका में सहायक कलेक्टर बिल्हौर कानपुर नगर के आदेश सहित सहायक कमिश्नर व राजस्व परिषद के आदेशों की वैधता को चुनौती दी गई थी।
याची का कहना था कि खुमान सिंह ने 27फरवरी 1901मे राधाकृष्ण के पक्ष में जमीन 30साल के लिए 290रूपये में बंधक रखी।
जमीन पर कब्जे का वाद पीताम्बर लाल व अन्य बनाम खुमान सिंह व अन्य के बीच वादी के पक्ष में डिक्री हो गया।और राजस्व अभिलेखों में याची की मां राम दुलारी का नाम दर्ज हो गया। चकबंदी के दौरान नन्हे सिंह को पावर आफ अटार्नी देकर याची ने अपना नाम दर्ज कराने की जिम्मेदारी सौंपी। किंतु नन्हे सिंह ने याची के बजाय विपक्षियों का नाम दर्ज करा दिया।इसकी जानकारी याची को27जनवरी 1987को हुई।तो धोखाधड़ी के आरोप में धारा 229बी में वाद दायर कर स्वामित्व की घोषणा की मांग की।
तमाम वाद विंदुओं सहित वाद की पोषणीयता पर आपत्ति की गई कि धारा 49 चकबंदी अधिनियम के तहत धारा 229बी में वाद दायर नहीं किया जा सकता। सहायक कलेक्टर ने वाद पोषणीय न मानते हुए खारिज कर दिया। अपील भी खारिज हो गई।जिसे राजस्व परिषद में द्वितीय अपील में चुनौती दी गई।राहत न मिलने पर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
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रिपोर्ट-राजेश मिश्रा।