
Pollution. दिल्ली-एनसीआर के साथ अब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की हवा भी जहरीली हो गई है। जैसे-जैसे ठंड दस्तक दे रही है, वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक श्रेणी में पहुंचने लगा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स के अनुसार, बीते दिनों लखनऊ का औसत एक्यूआई 356 दर्ज किया गया, जो गंभीर श्रेणी में आता है। वहीं, दिल्ली के कई इलाकों में यह आंकड़ा 400 के पार पहुंच गया। इसका सीधा असर नागरिकों की सेहत पर पड़ रहा है।
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, वायु प्रदूषण अब सिर्फ फेफड़ों तक सीमित समस्या नहीं है, बल्कि यह दिल, दिमाग, प्रजनन क्षमता और मानसिक स्वास्थ्य तक को प्रभावित कर रहा है। केजीएमयू के चिकित्सक अजय वर्मा ने बताया कि हवा में मौजूद पीएम 2.5 और अल्ट्रा फाइन पार्टिकुलेट्स (0.1 माइक्रोन से छोटे कण) फेफड़ों को पार कर रक्त प्रवाह में पहुंच जाते हैं और शरीर के कई हिस्सों को नुकसान पहुंचाते हैं।
उनके अनुसार, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रिक ऑक्साइड जैसी गैसें लकड़ी, कोयला और पेट्रोल के जलने से निकलती हैं। ये गैसें हार्ट अटैक, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ाती हैं। प्रदूषण के कारण हार्ट अटैक और अस्थमा के मामले 21 से 24 फीसदी तक बढ़ जाते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि वायु प्रदूषण से लंग कैंसर के 40 फीसदी मामले अब स्मोकिंग से नहीं, बल्कि प्रदूषण से हो रहे हैं। महिलाओं में ब्रेस्ट और यूटेरस कैंसर के केस भी प्रदूषण की वजह से बढ़ रहे हैं। वहीं, भारत डायबिटीज की राजधानी बनता जा रहा है और इसमें भी वायु प्रदूषण की भूमिका प्रमुख मानी जा रही है।
प्रदूषण की वजह से ऑक्सीजन की कमी
एक अन्य चिकित्सक डॉ. सिमरन वर्मा ने बताया कि प्रदूषण की वजह से ऑक्सीजन की कमी से दिमाग़ पर असर होता है, जिससे भूलने, भ्रम और थकान जैसी समस्याएं बढ़ती हैं। महिलाओं में पीसीओडी और फर्टिलिटी की दिक्कतें, वहीं पुरुषों में स्पर्म क्वालिटी घटने की समस्या देखी जा रही है।
यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की एक स्टडी के अनुसार, पीएम 2.5 के बढ़ने से बच्चों की सीखने की क्षमता घट जाती है और गर्भवती महिलाओं में बच्चे का विकास प्रभावित होता है। इससे प्रीमेच्योर डिलीवरी और कॉन्जनिटल एब्नॉर्मलिटीज़ के मामले भी बढ़ रहे हैं।
एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स की रिपोर्ट बताती है कि वायु प्रदूषण से भारतीयों की औसत आयु 5.3 वर्ष, जबकि दिल्लीवासियों की औसत आयु 11.9 वर्ष कम हो रही है। लखनऊ जैसे शहरों में भी औसत जीवन प्रत्याशा में लगभग 4 से 5 वर्ष की कमी दर्ज की गई है।
मस्तिष्क में इन्फ्लेमेटरी मार्कर बढ़ा रहा प्रदूषण
मनोरोग विशेषज्ञ ने बताया कि प्रदूषण हमारे मस्तिष्क में इन्फ्लेमेटरी मार्कर बढ़ा देता है, जिससे एंग्जायटी, डिप्रेशन, ओसीडी और डिमेंशिया जैसी मानसिक बीमारियां बढ़ रही हैं। उनके मुताबिक, बच्चों में ऑटिज़्म और एडीएचडी जैसी समस्याओं का खतरा भी बढ़ जाता है, जबकि युवाओं में मूड स्विंग और निर्णय लेने की क्षमता घटना आम हो गया है।
विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि ऐसे मौसम में सुबह के समय वॉक या एक्सरसाइज़ से बचें, जब स्मॉग ज़्यादा रहता है। बाहर निकलते समय एन-95 मास्क पहनें, घरों में एयर प्यूरीफायर का उपयोग करें, और बुजुर्ग या बीमार लोग धूप निकलने के बाद ही बाहर जाएं।
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लखनऊ के डॉक्टरों का कहना है कि अगर यह स्थिति यूं ही बनी रही, तो अगले कुछ वर्षों में शहरों में दिल और दिमाग की बीमारियों का बोझ दोगुना हो सकता है। यह अब सिर्फ पर्यावरण का नहीं, बल्कि स्वास्थ्य आपदा का संकेत बन चुका है।



