कोविड के बाद भारत में ‘खामोश लहर’ बनी स्वास्थ्य के लिये बड़ा खतरा, चिकित्सकों ने चेताया

कोविड के बाद भारत में वायु प्रदूषण सबसे बड़ा स्वास्थ्य संकट बनता जा रहा है। डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि सांस और फेफड़ों की बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है।

नई दिल्ली। कोविड-19 महामारी के बाद भारत के सामने जो सबसे बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती उभरकर सामने आई है, वह वायु प्रदूषण है। देश और विदेश में काम कर रहे कई वरिष्ठ डॉक्टरों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर वायु प्रदूषण पर तुरंत और ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।

यूके में कार्यरत भारतीय मूल के वरिष्ठ पल्मोनोलॉजिस्टों का कहना है कि भारत में सांस और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों की एक बड़ी “खामोश लहर” बन रही है। यह समस्या अभी पूरी तरह सामने नहीं आई है, क्योंकि बड़ी संख्या में लोग बिना जांच और इलाज के ही इन बीमारियों से जूझ रहे हैं। डॉक्टरों के अनुसार, यह छिपा हुआ बोझ आगे चलकर देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर भारी दबाव डाल सकता है।

पीटीआई से बातचीत में विशेषज्ञों ने बताया कि भारत में वायुमार्ग और फेफड़ों की बीमारियों का असर सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित नहीं है। अब युवा और पहली बार बीमार पड़ने वाले लोग भी बड़ी संख्या में इसकी चपेट में आ रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि बीते कुछ वर्षों में सांस की तकलीफ, खांसी, अस्थमा और फेफड़ों से जुड़ी अन्य समस्याओं के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है।

विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि पिछले एक दशक में दुनिया भर में हृदय रोगों में जो वृद्धि हुई है, उसे केवल गलत खानपान या मोटापे से जोड़ना सही नहीं होगा। उनके अनुसार, शहरों में बढ़ते वायु प्रदूषण, खासकर वाहनों और विमानन क्षेत्र से निकलने वाले जहरीले धुएं ने इस संकट को और गहरा कर दिया है। भारत समेत कई बड़े शहरों में प्रदूषित हवा अब गंभीर बीमारियों की एक बड़ी वजह बन चुकी है।

इस बीच, केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी हाल ही में माना कि दिल्ली में लगभग 40 प्रतिशत वायु प्रदूषण परिवहन क्षेत्र से आता है। उन्होंने कहा कि जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना जरूरी है और स्वच्छ ईंधन व जैव ईंधन जैसे विकल्पों को तेजी से अपनाने की आवश्यकता है।

सरकार ने भी किया स्वीकार

हालांकि, संसद के हाल ही में समाप्त शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार ने कहा कि वायु गुणवत्ता सूचकांक और फेफड़ों की बीमारियों के बीच सीधा संबंध साबित करने वाला कोई ठोस आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। इसके बावजूद सरकार ने यह स्वीकार किया कि वायु प्रदूषण श्वसन और अन्य बीमारियों को बढ़ाने वाले प्रमुख कारणों में से एक है।

लिवरपूल में कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजिस्ट और भारत की पूर्व कोविड-19 स्वास्थ्य सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. मनीष गौतम ने कहा कि वायु प्रदूषण को लेकर सरकार का बढ़ता ध्यान जरूरी है, लेकिन इसमें काफी देर हो चुकी है। उन्होंने कहा कि उत्तर भारत में रहने वाले लाखों लोगों के फेफड़ों को पहले ही नुकसान पहुंच चुका है। जो मरीज आज सामने आ रहे हैं, वे केवल समस्या का एक छोटा हिस्सा हैं।

डॉ. गौतम ने सरकार से अपील की कि सांस से जुड़ी बीमारियों की समय रहते पहचान और इलाज पर जोर दिया जाए। इसके लिए एक विशेष “लंग हेल्थ टास्क फोर्स” बनाने की जरूरत है। डॉक्टरों के मुताबिक, दिसंबर महीने में ही दिल्ली के अस्पतालों में सांस के मरीजों की संख्या में 20 से 30 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

स्थायी समाधान की जरूरत

लंदन के सेंट जॉर्ज यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के मानद कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. रजाय नारायण ने कहा कि वायु प्रदूषण और हृदय, फेफड़ों व तंत्रिका तंत्र से जुड़ी बीमारियों के बीच संबंध को लेकर पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हैं। उन्होंने चेताया कि इस समस्या पर देरी करने से न केवल लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ेगा, बल्कि देश पर आर्थिक बोझ भी बढ़ेगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि अल्पकालिक उपाय कुछ राहत दे सकते हैं, लेकिन स्थायी समाधान के लिए साफ हवा को प्राथमिकता देने वाली दीर्घकालिक और वैज्ञानिक नीतियों को सख्ती से लागू करना बेहद जरूरी है।

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