
Bangladesh Political Crisis : शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता गहराती दिख रही है। अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के पास न तो स्पष्ट जनादेश है और न ही प्रशासन पर मजबूत पकड़। इसी शून्य का फायदा उठाकर देश के भीतर सत्ता संघर्ष, विरोध-प्रदर्शन और ध्रुवीकरण तेज हुआ है। भारत में यह सवाल उठ रहा है कि क्या इस उथल-पुथल के बीच भारत-विरोधी एजेंडा भी हवा पकड़ रहा है?
क्यो बढ़ी चिंता?
सुरक्षा और कूटनीतिक हलकों में यह चर्चा है कि कुछ राजनीतिक और कट्टरपंथी समूह बंगाल की खाड़ी से जुड़े मुद्दों, सीमा प्रबंधन और क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर भारत को घेरने की कोशिश कर सकते हैं। सोशल मीडिया पर भारत-विरोधी बयानबाज़ी और भ्रामक नैरेटिव्स के बढ़ते उदाहरण भी सामने आ रहे हैं। हालांकि, इन दावों की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
अंतरिम सरकार की चुनौती
मोहम्मद यूनुस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है—स्थिरता लौटाना। कमजोर राजनीतिक आधार के चलते प्रशासनिक फैसलों में देरी, कानून-व्यवस्था पर दबाव और आर्थिक अनिश्चितता बनी हुई है। ऐसे माहौल में बाहरी नीति पर स्पष्ट और संतुलित रुख अपनाना कठिन हो जाता है।
भारत-बांग्लादेश रिश्तों पर असर?
भारत और बांग्लादेश के रिश्ते ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से गहरे रहे हैं। हाल के वर्षों में व्यापार, कनेक्टिविटी और सुरक्षा सहयोग मजबूत हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा उथल-पुथल के बावजूद दोनों देशों के हित आपसी सहयोग में ही हैं, लेकिन अस्थिरता लंबी चली तो रिश्तों पर दबाव बढ़ सकता है।
आगे का रास्ता
विश्लेषकों के अनुसार, बांग्लादेश में जल्द स्थिर राजनीतिक व्यवस्था और पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया ही हालात सुधार सकती है। वहीं, भारत को भी संयमित कूटनीति, संवाद और क्षेत्रीय साझेदारियों के जरिए स्थिति पर नजर बनाए रखनी होगी। फिलहाल ‘एंटी-इंडिया प्लान’ को लेकर चल रही चर्चाएं आरोपों और आशंकाओं के स्तर पर हैं। ज़मीनी सच्चाई यही है कि बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति की स्थिरता ही पूरे क्षेत्र की शांति और सहयोग की कुंजी बनेगी।



