
Congress: कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर उठा विवाद कांग्रेस की अंदरूनी कलह को एक बार फिर सुर्खियों में ले आया है। उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के समर्थक उस फॉर्मूले पर अड़े हैं, जिसके तहत 2023 में सरकार गठन के समय मुख्यमंत्री पद की आधी अवधि उन्हें देने का वादा किया गया था। अब इस मुद्दे ने ऐसा रूप ले लिया है कि पार्टी में बड़े पैमाने पर असंतोष और संभावित विद्रोह की आशंका बढ़ गई है।
कांग्रेस नेतृत्व के लिए यह स्थिति नई नहीं है। पार्टी का इतिहास सत्ता संघर्षों, गुटबाजी और नेतृत्व विवादों से भरा रहा है। आजादी से पहले से लेकर आज तक कांग्रेस 70 से अधिक बार टूट चुकी है और हर बार इसके केंद्र में सत्ता और वर्चस्व की लड़ाई ही रही है।
आधुनिक इतिहास देखें, तो 2014 के बाद कांग्रेस लगातार कमजोर होती चली गई। कई राज्यों में उसकी सरकारें अंदरूनी खींचतान की वजह से डगमगाईं। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच हुए संघर्ष ने पार्टी की केंद्रीय नेतृत्व पर पकड़ को कमजोर दिखा दिया था। इसी तरह पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की नाराजगी और बाद में पार्टी से अलग होना भी कांग्रेस के लिए बड़ा झटका था।
आजादी से पहले भी हो चुकी टूट
यदि इतिहास में और पीछे जाएं, तो कांग्रेस की टूट का सिलसिला आजादी से पहले ही शुरू हो चुका था। गांधीजी के फैसलों से असहमत नेताओं ने स्वराज पार्टी बनाई। सुभाष चंद्र बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। आजादी के बाद जे.बी. कृपलानी, राजगोपालाचारी और चरण सिंह जैसे बड़े नेता कांग्रेस छोड़ नई राजनीतिक धाराएं निर्मित करते गए।
1970 के दशक में इंदिरा गांधी तक को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया, जिसके बाद कांग्रेस (आर) और फिर कांग्रेस (आई) का गठन हुआ, जो आज की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस है। 1990 और 2000 के दशक में शरद पवार, ममता बनर्जी, वाई.एस. राजशेखर रेड्डी के परिवार और कई अन्य बड़े नेता अलग होकर नई शक्तिशाली क्षेत्रीय पार्टियों का निर्माण कर चुके हैं।
कांग्रेस नेतृत्व को लेकर असंतोष
हाल के वर्षों में जी-23 की चिट्ठी ने यह साफ कर दिया था कि कांग्रेस में संगठनात्मक ढांचे और नेतृत्व शैली को लेकर असंतोष गहराई तक जाता है। कई वरिष्ठ नेताओं के पार्टी छोड़ने, सार्वजनिक असंतोष जताने और अनुशासनहीनता की घटनाओं ने कांग्रेस को लगातार कमजोर किया है।
कर्नाटक का मौजूदा विवाद कांग्रेस की उसी परंपरागत समस्या – गुटबाजी, नेतृत्व संकट और सत्ता लोलुपता का ताजा उदाहरण है। पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी यह बन गई है कि वह अपने ही नेताओं पर अनुशासन लागू करने में विफल रही है। वरिष्ठ नेता नाराज होते हैं, युवा नेतृत्व असंतुष्ट रहता है और राज्य इकाइयों में लगातार टकराव चलता रहता है।
कांग्रेस को यदि राजनीतिक पुनर्जीवन चाहिए, तो उसे कठोर संगठनात्मक सुधार, स्पष्ट नेतृत्व और मजबूत अनुशासन की आवश्यकता होगी। अन्यथा इतिहास दोहराता रहेगा और पार्टी धीरे-धीरे और छोटे समूहों में बिखरती जाएगी – जैसा कि इसके पूरे इतिहास में होता आया है।



