
Bihar News : बिहार में मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने जीत दर्ज की है और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार का एक बार फिर मुख्यमंत्री बनना लगभग निश्चित है। ‘सुशासन बाबू’ के नाम से पहचान बनाने वाले नीतीश कुमार ने राज्य में बुनियादी ढांचा, शिक्षा और महिलाओं के सशक्तिकरण जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय काम किए हैं, लेकिन इसके बावजूद बिहार देश के सबसे पिछड़े राज्यों में गिना जाता है। नए कार्यकाल में उनके सामने कई बड़ी चुनौतियाँ होंगी, जिनसे निपटे बिना राज्य की विकास गति तेज़ नहीं हो सकेगी।
रोज़गार का संकट और पलायन की समस्या
बिहार विधानसभा चुनाव में रोज़गार का मुद्दा प्रमुख रहा। आरजेडी ने जहां हर परिवार से एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वादा किया, वहीं एनडीए ने एक करोड़ नौकरियाँ देने की घोषणा की। पलायन बिहार की सबसे बड़ी समस्या है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के तीन में से दो घर ऐसे हैं जिनमें परिवार का एक सदस्य काम के लिए दूसरे राज्यों में गया हुआ है। 1980 के दशक में यह आंकड़ा मात्र 10–15% था, जो अब बढ़कर 65% तक पहुंच गया है।
छोटी कृषि जोत, उद्योगों की कमी और कमजोर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की वजह से लोग रोज़गार के लिए घर छोड़ने को मजबूर हैं। बिहार का 54% वर्कफोर्स खेती पर निर्भर है, जबकि राष्ट्रीय औसत 46% है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में राज्य का योगदान सिर्फ 5% है, जो दो दशक पहले भी इसी स्तर पर था। इसके विपरीत गुजरात की जीडीपी में यह हिस्सा 36% है।
शहरीकरण धीमा, आर्थिक गतिविधियों की कमी
बिहार की एक और प्रमुख चुनौती इसका बेहद कम शहरीकरण है। 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में शहरीकरण की दर केवल 11.3% है, जबकि केरल, गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्यों में यह 40% से अधिक है। 2013 से 2023 के नाइट लाइट डेटा से भी स्पष्ट होता है कि बिहार के ज्यादातर विधानसभा क्षेत्र अब भी ग्रामीण प्रकृति के हैं। यह उद्योग, व्यापार और निर्माण गतिविधियों के सीमित विस्तार को दर्शाता है।
कानून-व्यवस्था में गिरावट
नीतीश कुमार को बिहार से ‘जंगल राज’ खत्म करने का श्रेय दिया जाता है, लेकिन हाल के वर्षों के आंकड़े चिंता बढ़ाते हैं। स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2015 से 2024 के बीच अपराध दर में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। 2023 में राज्य में हत्या के 2,862 मामले दर्ज हुए, जो उत्तर प्रदेश के बाद देश में दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है। सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों पर हमलों के मामलों में बिहार देश में पहले स्थान पर रहा।
असमान विकास और प्रति व्यक्ति आय का संकट
शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं में सुधार के बावजूद बिहार प्रति व्यक्ति आय के मामले में सबसे गरीब राज्य है। भारत की औसत प्रति व्यक्ति आय जहां 1.89 लाख रुपये से अधिक है, वहीं बिहार की यह आय केवल 60,000 रुपये के आसपास है। जिलों के बीच भी भारी असमानता है – पटना की प्रति व्यक्ति आय 2.15 लाख रुपये है जबकि शिवहर में यह मात्र 33,399 रुपये है।
शिक्षा और जनसंख्या वृद्धि की चुनौती
राज्य में स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या चिंताजनक है, जिससे कौशल विकास और रोजगार के अवसर सीमित हो जाते हैं। इसके साथ ही बिहार की प्रजनन दर 2.8 बनी हुई है, जो राष्ट्रीय औसत से अधिक है। बढ़ती आबादी के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार निर्माण पर भारी दबाव पड़ रहा है।
आने वाले वर्षों में क्या जरूरी?
विशेषज्ञ मानते हैं कि युवा आबादी बिहार की सबसे बड़ी ताकत है। यदि राज्य शिक्षा, कौशल विकास, औद्योगिक निवेश और शहरीकरण पर तेज़ी से काम करे, तो आने वाले वर्षों में बड़े बदलाव संभव हैं। नए कार्यकाल में नीतीश कुमार के लिए यही सबसे बड़ी कसौटी होगी।
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