
ए. इब्राहिम शेरिफ
पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयन्ती के उपलक्ष्य में हर साल 14 नवम्बर को भारत में बाल दिवस मनाया जाता है, पंडित नेहरू एक ऐसे नेता थे जो बच्चों को बहुत प्यार करते थे। हम बात कर रहे हैं रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) की, जो गुमनाम नायक हैं और जो सिर्फ यात्रियों और रेलवे सम्पत्ति की ही नही, बल्कि उससे भी कहीं ज्यादा की सुरक्षा करते हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि आज के बच्चे कल के भारत का निर्माण करेंगे।
आरपीएफ बच्चों की रक्षा करता है, लेकिन रेलवे प्लेटफॉर्म के कोनों में, सीढ़ियों के नीचे, प्रतीक्षालयों में और चलती ट्रेनों में, हजारों बच्चे ऐसे हैं जिन्हें इस उत्सव के बारे में कुछ भी पता नहीं है। दिन-दहाड़े, भागती भीड़ की नजरों से ओझल होकर तस्करी का शिकार हुये बच्चे, दुर्व्यवहार से भागकर किसी और जाल में फँसने वाले बच्चे, परित्यक्त, खोये हुये या बाल श्रम में धकेले गये बच्चों को समय से बहुत पहले ही उनकी मासूमियत छीन ली गई। इन भुला दिये गये चेहरों के लिये, बाल दिवस कोई उत्सव नहीं, बल्कि मदद की गुहार है। इस आह्वान का जवाब देने वाला समूह रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के खाकी वर्दीधारी पुरूष और महिलायें हैं।
आरपीएफ : जहां कर्तव्य और करूणा का मिलन
हालांकि आरपीएफ रेलवे सुरक्षा में अपनी भूमिका के लिए जाना जाता है, लेकिन बहुत से लोग बाल संरक्षण में इसके महत्वपूर्ण योगदान से अनजान हैं। रेलवे स्टेशन, जो अक्सर भीड़भाड़ और अराजक होते हैं, बच्चों के लिये खतरे के क्षेत्र बन सकते हैं, जहाँ वे अपने परिवारों से बिछड़ सकते हैं, तस्करों का शिकार हो सकते हैं, या संकट में किसी की नजरों से ओझल हो सकते है। यहीं, इन्ही जगहों पर, आरपीएफ के जवान जीवन रेखा बन जाते हैं, न केवल कानून प्रवर्तनकर्त्ता के रूप में, बल्कि अभिभावक, मार्गदर्शक और देखभाल करने वाले के रूप में भी।
1957 में स्थापित आरपीएफ को मूल रूप से रेलवे सम्पत्ति की सुरक्षा का दायित्व सौंपा गया था और बाद में इसे यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, यह और भी ज्यादा शक्तिशाली बन गया है। भारत की विशाल रेलवे प्रणाली से गुजरने वाले हजारों संकटग्रस्त बच्चों के लिये एक जीवनरेखा है।
67,000 किलोमीटर से ज्यादा लम्बी पटरियों, 12000 से ज्यादा टेªनों और 7,000 स्टेशनों वाला भारतीय रेलवे सार्वजनिक परिवहन का एक चमत्कार है और दुर्भाग्य से, बच्चों के लिये असुरक्षित गलियारा भी है। यहीं पर आरपीएफ, बाल तस्करी, बालश्रम और रेल पर शोषण के खिलाफ भारत की पहली रक्षा पंक्ति के रूप में सामने आता है।
ऑपरेशन नन्हे फरिश्तेः खाकी में उम्मीद
आरपीएफ की राष्ट्रव्यापी पहल, ऑपरेशन नन्हें फरिश्ते, बाल-केन्द्रित पुलिसिंग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। 2017 में, भारतीय रेलवे ने आरपीएफ के तहत ऑपरेशन नन्हें फरिश्ते नामक एक परिवर्तनकारी पहल शुरू की-जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘‘नन्हें फरिश्ते‘‘। इसका उद्देश्य रेलवे परिसरों में संकटग्रस्त बच्चों को बचाना, उनका पुनर्वास और सुरक्षा प्रदान करना है।

अपनी शुरूआत से ही, ऑपरेशन नन्हें फरिश्ते ने 1.6 लाख से ज्यादा बच्चों को बचाया है, जिनमें हजारों बच्चे श्रम, विवाह या दुर्व्यवहार के लिए तस्करी किये गये थे। अनगिनत सम्भावित बाल तस्करी और बाल श्रम के मामलों को रोका गया है। पुर्नवास के लिये चाइल्ड लाइन 1098, जिला बाल संरक्षा इकाईयां और गैर सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी की है। पूर्वोत्तर रेलवे पर वर्ष 2023 से अक्टूबर 2025 तक 1811 बच्चों को स्टेशन/गाड़ियों से बाल तस्करों से बचाकर उनके अभिभावकों अथवा पुनर्वास के लिये चाइल्ड लाइन को सौंपा गया।
बाल सहायता डेस्क : बड़े दिल वाले छोटे बूथ
प्रमुख स्टेशनों पर, बाल सहायता डेस्क कमजोर बच्चों के लिए आश्रय स्थल बन गए हैं। यहाँ बचाए गए बच्चों को सिर्फ सौप नहीं दिया जाता। उनकी देखभाल की जाती है, उन्हें दिलासा दिया जाता है और उनकी बात सुनी जाती है। इस संदर्भ में, हजारों आर.पी.एफ. कर्मियों को बाल अधिकारों, अघात देखभाल और सॉफ्ट स्किल्स का प्रशिक्षण दिया जाता है।
बेंगलुरू, 2022 : यशवंतपुर प्लेटफार्म पर एक नियमित गश्त के दौरान 10-14 साल के 08 लड़को को बचाया गया, जिन्हें एक कपड़ा कारखाने में नौकरी देने का वादा किया गया था। सच तो यह है कि उन्हें बंधुआ मज़दूरी के लिए ही बनाया गया था। उनकी आजा़दी छीने जाने से पहले ही उन्हें वापस कर दिय गया।
कानपुर, 2023 : संदिगध व्यवहार को पहचानने के लिए प्रशिक्षित आर.पी.एफ. कर्मियों ने एक 13 साल की लड़की को एक ऐसे व्यक्ति के साथ देखा, जो उसका चाचा होने का दावा कर रहा था। एक गहन पूछताछ से पता चला कि उसे जबरन शादी के लिए तस्करी करके ले जाया जा रहा था। उसे बचा लिया गया, तस्कर को गिरफ्तार कर लिया गया और अब वह सरकारी देखरेख में स्कूल में है।
चेन्नई सेंट्रल, 2024 : एक रोता हुआ 2 साल का बच्चा वेंडिंग स्टॉल के पास लावारिस हालत में मिला। आरपीएफ की एक युवा महिला अधिकारी, कांस्टेबल प्रवीणा ने बच्चे को घंटों गोद में रखा, उसे दूध पिलाया और सीसीटीवी फुटेज के ज़रिए उसके परिवार का पता लगाने में मदद की। अब लड़के की माँ उसे प्यार से अम्मा कहती हैं।
महिला आरपीएफ कर्मी : वर्दीधारी देवदूत
शायद आरपीएफ द्वारा बाल संरक्षण में सबसे प्रभावशाली बदलाव महिला कांस्टेबलों और अधिकारियों की बढ़ती संख्या के माध्यम से आया है। उनकी उपस्थिति और सहानुभूति से, बच्चे सुरक्षित महसूस करते हैं और खुलकर बात करने में सहज होते हैं। युवा लड़कियों, खासकर दुर्व्यवहार की शिकार लड़कियों को पोषण संबंधी देखभाल मिलती है। आरपीएफ पीड़ितों के प्रति एक अधिक संतुलित, मानवीय चेहरा प्रस्तुत करती है। ये महिलाएँ न केवल रक्षक हैं, बल्कि बहनें, माँ और सलाहकार भी हैं।
चाहे वह भीड़ भरे प्लेटफॉर्म पर किसी खोए हुए बच्चे को शांत करने वाला कांस्टेबल हो या किसी संदिग्ध तस्कर का पीछा करने वाला इंस्पेक्टर, वीरता के इन दैनिक कार्यों ने अनगिनत युवाओं के जीवन में आशा और सुरक्षा/संरक्षा का संचार किया है।
बाल श्रमः एक खुला संकट
आज भी, हज़ारों बच्चे अवैध रूप से काम पर लगे हैं, जिनमें से कुछ तो 8 साल के भी नहीं हैं। श्रम प्रवर्तन अधिकारियों और पुलिस के साथ साझेदारी में, आरपीएफ ने इनमें से हज़ारों बच्चों को बचाया है और शोषकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की है।
बचाव से परे: पुनर्वास और आशा
एक बच्चे को बचाना केवल पहला कदम है। आरपीएफ तस्करों पर मुकदमा चलाने के लिए उचित दस्तावेज और एफआईआर भी सुनिश्चित करता है, आघात से उबरने के लिए चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक सहायता तथा परिवार का पता लगाना और जहाँ तक संभव हो, सुरक्षित वापसी, और सरकारी योजनाओं और गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से दीर्घकालिक पुनर्वास भी सुनिश्चित करता है। कई मामलों में, आरपीएफ कर्मी बचाए गए बच्चों के साथ संपर्क बनाए रखते हैं और उन्हें पीड़ित से आत्मविश्वासी युवा बनते हुए देखते हैं।
बाल तस्करी के खिलाफ मौन युद्ध
भारत में, बाल तस्करी एक संकट है, जिस पर अक्सर जनता का ध्यान नहीं जाता। तस्कर ग्रामीण या गरीब परिवारों के बच्चों को निशाना बनाते हैं और भीड़-भाड़ वाले डिब्बों की गुमनामी का फायदा उठाकर उन्हें ट्रेन से ले जाते हैं। लेकिन बढ़ी हुई सतर्कता, खुफिया नेटवर्क और तकनीकी सहायता के साथ, आरपीएफ रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में उभरी है। तस्करी के हॉटस्पॉट के रूप में पहचाने गए स्टेशनों पर नियमित रूप से विशेष तस्करी विरोधी अभियान चलाए जाते हैं। आरपीएफ झूठ और डर की रेखाओं को पढ़ने में माहिर हो गई है।

रक्षकों को सशक्त बनाना: उनकी भूमिका के महत्व को समझते हुए, रेल मंत्रालय ने आरपीएफ कर्मियों के लिए विशेष बाल संरक्षण प्रशिक्षण में निवेश किया है। उद्देश्य स्पष्ट है कि भारतीय रेलवे को केवल एक परिवहन नेटवर्क ही नहीं, बल्कि हर बच्चे के लिए एक सुरक्षित गलियारा बनाया जाए।
बाल दिवस का संदेश, हम सभी को सुनना चाहिए
हमारे रेलवे प्लेटफॉर्म पर संकट में फंसे उन अनदेखे बच्चों को याद करें। उन आरपीएफ योद्धाओं को सलाम करें जो सिर्फ़ संपत्ति ही नहीं, बल्कि जान भी बचा रहे हैं। आइए, बाल अधिकारों और संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने और समर्थन का संकल्प लें और नागरिकों को आरपीएफ हेल्पलाइन 139 या चाइल्डलाइन 1098 पर कॉल करके संदिग्ध मामलों की सूचना देने के लिए प्रोत्साहित करें।
आशा की रेल पटरियाँ : भारतीय रेल भले ही स्टील से बनी हो, लेकिन इसमें भारत के बच्चों के सपने बसे हैं। जहाँ यह देश भर में लोगों को ले जाती है, वहीं आरपीएफ यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी बच्चा खतरे में न पड़े।
इस बाल दिवस पर, आइए याद रखें:- जब तक आरपीएफ ड्यूटी पर है, बचपन कभी भी रास्ते में नहीं खोना चाहिए। दुनिया बचपन की खूबसूरती का जश्न मनाए। आरपीएफ इसकी सुरक्षा करता रहे एक-एक बच्चा, एक बचाव, एक-एक भविष्य।
किसी राष्ट्र की असली ताकत इस बात से झलकती है कि वह अपने सबसे कमजोर लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता है। आरपीएफ सिर्फ़ एक सुरक्षा बल नहीं है, बल्कि वर्दीधारी भारत की अंतरात्मा का प्रतीक है।
यह भी पढ़ें – ‘दोषियों को ऐसी सजा देंगे, दोबारा सोचने की हिम्मत भी न हो’, दिल्ली ब्लास्ट को लेकर अमित शाह का संदेश – जानिए दिनभर के अपडेट
रेलवे प्लेटफ़ॉर्म की सुरक्षा करके, वे बचपन की रक्षा कर रहे हैं। आरपीएफ सिर्फ़ सुरक्षाकर्मी के रूप में ही नहीं, बल्कि रक्षक के रूप में भी आगे आता है। आइए हम उनके काम को पहचानें, उनका समर्थन करें और उनका सम्मान करें – सिर्फ़ बाल दिवस पर ही नहीं, बल्कि हर दिन।
(लेखक आईआरपीएफएस डीआईजी-कम-सीएससीए आरपीएफ/दक्षिण रेलवे हैं।)



