
Report . भारत में शराब की लत अब सामाजिक और स्वास्थ्य संकट का रूप ले चुकी है। अकेले उत्तर प्रदेश में करीब 4.2 करोड़ लोग शराब का सेवन करते हैं, जो चिंता का विषय है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश में लगभग 16 करोड़ लोग शराब का सेवन करते हैं, जिनमें से 5.7 करोड़ लोग शराब से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं। यानी हर तीसरा शराब पीने वाला व्यक्ति किसी न किसी रूप में शराब की लत का शिकार है।
मनोरोग कंसल्टेंट डॉ. शरद ने बताया कि उनके पास 12 साल से लेकर 70 साल तक के लोग शराब से जुड़ी समस्याओं के इलाज के लिए आते हैं। उनके अनुसार, ज़्यादातर मामले युवाओं के हैं, विशेष रूप से 12 से 30 वर्ष की उम्र के। उन्होंने बताया कि लंबे समय तक शराब पीने वाले लोगों में मिर्गी, घबराहट, नींद न आना, हाथ-पैर कांपना और मानसिक विकार जैसी समस्याएं हो सकती हैं। अचानक शराब छोड़ने पर कुछ मामलों में साइकोसिस और डिमेंशिया तक विकसित हो सकता है। उन्होंने कहा कि रिहैब सेंटर वही प्रभावी हैं जहां मरीज़ की बात सुनी जाए, न कि उसे सज़ा दी जाए। शराब की लत मारपीट से नहीं, प्यार, परामर्श और दवा से छूटती है।
आदत लत में बदल गई
वहीं, लखनऊ की रहने वाली सविता (बदला हुआ नाम) ने बताया कि उन्होंने कॉलेज में शराब पीना शुरू किया, क्योंकि उन्हें लगा कि यह आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका है। उन्होंने कहा कि शराब पीने के बाद मुझे लगा कि मैं सबकुछ कर सकती हूं, मैं खुलकर बात कर रही थी, डांस कर रही थी। वो एहसास एडिक्टिव था। लेकिन धीरे-धीरे यह आदत लत में बदल गई।
कविता कहती हैं, मैं सोचती थी कि मैं अपने लिए पी रही हूं, पर शराब ने मेरे रिश्ते तोड़ दिए, मेरे बच्चों से दूरी बढ़ा दी। वह कहती हैं, हमें उतनी ही देखभाल और प्यार चाहिए, जितना किसी अन्य बीमार व्यक्ति को मिलता है।
शराबी को समाज में तिरस्कार से देखा जाता
लखनऊ के दीपक (बदला हुआ नाम) की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। नशे की वजह से उन्होंने नौकरी, घर और परिवार सब कुछ खो दिया। उन्होंने बताया कि तीन साल में उनकी हालत इतनी खराब हो गई कि उनके पिता ने कहा, काश तू पैदा होते ही मर गया होता। अब वे रिहैबिलिटेशन सेंटर की मदद से शराब से दूरी बना चुके हैं। दीपक कहते हैं, शराबी को समाज में तिरस्कार से देखा जाता है, जबकि वो भी एक बीमार व्यक्ति है जिसे मदद और सहानुभूति की जरूरत होती है।
साल 2019 के सरकारी सर्वे के अनुसार, भारत में लगभग 2.9 करोड़ लोग शराब की लत के शिकार हैं। छत्तीसगढ़ में 35.6 फीसदी, त्रिपुरा में 34.7 फीसदी, पंजाब में 28.5 फीसदी, अरुणाचल प्रदेश में 28 फीसदी और गोवा में 26 फीसदी लोग शराब का सेवन करते हैं।
अगर संख्या के आधार पर देखें, तो उत्तर प्रदेश में 4.2 करोड़, पश्चिम बंगाल में 1.4 करोड़ और मध्य प्रदेश में 1.2 करोड़ लोग शराब पीते हैं। महिलाओं में शराब सेवन की दर भी चिंताजनक है। अरुणाचल प्रदेश में 15.6 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 13.7 फीसदी महिलाएं शराब पीती हैं। वहीं, पंजाब, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में 3–6 फीसदी बच्चे शराब पीने की आदत में शामिल हैं।
काउंसलिंग से लाते हैं मानसिक बदलाव
विशेषज्ञों ने बताया कि रिहैब में जाने वाले मरीजों को पहले दवाएं देकर विथड्रॉल सिंड्रोम पर नियंत्रण किया जाता है। इसके बाद ग्रुप सेशन्स और काउंसलिंग के ज़रिए मानसिक बदलाव लाने की कोशिश की जाती है। उनका कहना है कि शराब की लत कोई शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक बीमारी है।
दुनिया भर में शराब की लत से ठीक होने की दर लगभग 7-8 फीसदी है, लेकिन भारत में यह सिर्फ़ 2-3 फीसदी है। इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि रिहैब सेंटर में दवाओं के साथ मानसिक और सामाजिक सहयोग बेहद जरूरी है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, शराब छोड़ने के 28 दिन बाद शरीर तो ठीक हो जाता है, लेकिन असली चुनौती तब शुरू होती है जब व्यक्ति फिर से बाहर की दुनिया में लौटता है।
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उल्लेखनीय है कि भारत में शराब का बाज़ार 60 अरब डॉलर का हो चुका है और विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले वर्षों में प्रति व्यक्ति शराब की खपत और बढ़ेगी। ऐसे में जरूरत है कि समाज इस लत को सिर्फ़ अपराध नहीं, बल्कि एक गंभीर बीमारी समझे और इसके इलाज, परामर्श और पुनर्वास पर खुलकर बात करे।



