
Delhi Blast : दिल्ली के लाल क़िले के पास हुए धमाके के बाद जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा एजेंसियों ने अब तक की सबसे व्यापक कार्रवाई शुरू की है। कुलगाम, शोपियां, अवंतीपोरा और गांदरबल जिलों में चल रहे इस बड़े पैमाने के सर्च ऑपरेशन को सुरक्षा विश्लेषक सिस्टमेटिक क्लीन-अप यानी व्यवस्थित सफाई अभियान बता रहे हैं। वहीं, इस अभियान के बीच पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने बयान दिया है कि निर्दोष परिजनों को गिरफ्तार न किया जाए।
सुरक्षा सूत्रों के मुताबिक, जम्मू कश्मीर के केवल कुलगाम में ही 200 से अधिक ठिकानों पर छापे मारे गए हैं, जबकि पिछले चार दिनों में पूरे कश्मीर में 400 से अधिक कॉर्डन-एंड-सर्च ऑपरेशन किए गए हैं। इस दौरान करीब डेढ़ हज़ार लोगों से पूछताछ की गई है। यह अभियान जमात-ए-इस्लामी समेत अन्य प्रतिबंधित संगठनों और उनके सपोर्ट नेटवर्क को जड़ से उखाड़ने की दिशा में एक बड़ा कदम है। केंद्र और राज्य प्रशासन की प्राथमिकता अब सिर्फ आतंकवाद से निपटना नहीं, बल्कि उसके सामाजिक और वैचारिक ढांचे को भी ध्वस्त करना है।
खुफिया एजेंसियों ने शुरू किया अभियान
दिल्ली के लाल क़िले के पास हुए धमाके और हाल ही में हरियाणा-उत्तर प्रदेश में पकड़े गए आतंकी मॉड्यूल के तार कश्मीर से जुड़े पाए गए हैं। जांच एजेंसियों का मानना है कि घाटी के आतंकी नेटवर्क अब अंतर-राज्यीय स्तर पर खुद को पुनर्गठित करने की कोशिश कर रहे हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए जम्मू-कश्मीर पुलिस, सीआईडी और केंद्रीय खुफिया एजेंसियों ने संयुक्त रूप से यह व्यापक अभियान शुरू किया है।
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की अध्यक्षता में हुई उच्चस्तरीय सुरक्षा समीक्षा बैठक में साफ निर्देश दिए गए हैं कि किसी भी स्तर पर लापरवाही या राजनीतिक हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस बैठक में निर्णय लिया गया कि सपोर्ट नेटवर्क यानी आतंकियों को वित्तीय, तार्किक और वैचारिक सहयोग देने वाले तत्त्वों पर प्राथमिकता से प्रहार किया जाएगा।
इस अभियान के बीच पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने बयान दिया है कि निर्दोष परिजनों को गिरफ्तार न किया जाए। उनके इस बयान को लेकर राजनीतिक हलकों में बहस छिड़ गई है। भाजपा और सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि महबूबा मुफ़्ती जैसी प्रतिक्रियाएं आतंकवाद के खिलाफ चल रहे समन्वित प्रयासों को कमजोर करती हैं।,
शैक्षणिक और सामाजिक संस्थानों की भी निगरानी
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कश्मीर में अब भावनात्मक राजनीति की जगह यथार्थवादी सुरक्षा दृष्टिकोण ने ले ली है। राज्य और केंद्र सरकार स्पष्ट कर चुके हैं कि आतंकवाद को अब स्थानीय असंतोष के रूप में नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्रत्यक्ष खतरे के रूप में देखा जाएगा।
सूत्रों के अनुसार, प्रशासन केवल छापेमारी तक सीमित नहीं है, बल्कि उन शैक्षणिक और सामाजिक संस्थानों की भी निगरानी कर रहा है, जिनके जरिए वर्षों से कट्टरपंथी विचारधारा फैलाने की कोशिशें होती रही हैं। हिज्बुल मुजाहिदीन, जैश-ए-मोहम्मद, अंसार गजवातुल हिंद और जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों से जुड़े नेटवर्क पर लगातार कार्रवाई जारी है। इसे केवल दमन नहीं, बल्कि डि-रेडिकलाइजेशन यानी चरमपंथ-मुक्त समाज की दिशा में कदम माना जा रहा है।
अब फोकस वैचारिक श्रृंखला पर
विशेषज्ञों का कहना है कि यह अभियान भारत की कश्मीर नीति में निर्णायक मोड़ का प्रतीक है। अब फोकस केवल बंदूकधारियों पर नहीं, बल्कि उस पूरी वैचारिक श्रृंखला पर है जो आतंकवाद को जन्म देती और पोषित करती है। सरकार का संदेश साफ है, किसी भी कीमत पर देश की संप्रभुता से समझौता नहीं होगा।
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इन व्यापक कार्रवाइयों से यह संकेत मिल रहा है कि भारत अब किसी भी स्तर पर आतंकवाद या उसके परोक्ष समर्थन को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। यह नई रणनीति न केवल सुरक्षा दृष्टि से आवश्यक है, बल्कि कश्मीर को स्थायी शांति, सुरक्षा और विकास की राह पर ले जाने के लिए भी अनिवार्य कदम है।



