Bihar Election 2025 : ‘भूमिहारों का वर्चस्व, यादवों की चुनौती’, मोकामा की सियासत क्यों सिमट गई बाहुबलियों तक?

Bihar Election 2025 : मोकामा विधानसभा में बाहुबल, जातीय समीकरण और वर्चस्व की जंग-अनंत सिंह बनाम सूरजभान सिंह की टक्कर में फिर गरमाई बिहार की राजनीति।

Bihar Election 2025. बिहार की राजनीति में मोकामा विधानसभा सीट हमेशा से बाहुबल, जातीय समीकरण और वर्चस्व की लड़ाई के लिए जानी जाती रही है। पटना से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित यह क्षेत्र एक बार फिर सुर्खियों में है, दुलारचंद यादव की हत्या के बाद। इस हत्या का आरोप जेडीयू उम्मीदवार और बाहुबली नेता अनंत सिंह पर लगा है, जिससे पूरे बिहार का सियासी माहौल गरमा गया है।

अनंत सिंह ने इस हत्या के पीछे अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी बाहुबली सूरजभान सिंह का हाथ बताया है। दिलचस्प बात यह है कि सूरजभान की पत्नी वीणा देवी इस बार आरजेडी के टिकट पर मोकामा से चुनाव मैदान में हैं। वहीं, मृतक दुलारचंद यादव भी कभी लालू यादव के करीबी रहे दबंग नेता थे, जो हाल के दिनों में जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी के समर्थन में सक्रिय थे।

तीन दशक से बाहुबलियों का गढ़

मोकामा की सियासत पिछले साढ़े तीन दशक से बाहुबलियों के इर्द-गिर्द घूम रही है। 1990 में अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह जनता दल के टिकट पर विधायक बने थे। इसके बाद 1995 में उन्होंने दोबारा जीत दर्ज की, लेकिन 2000 में उन्हें बाहुबली सूरजभान सिंह ने हरा दिया। यही से मोकामा में दो बाहुबलियों की टक्कर की कहानी शुरू हुई।

2005 में अनंत सिंह ने पहली बार जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ा और विधायक बने। इसके बाद वह लगातार तीन बार विधानसभा पहुंचे – दो बार जेडीयू और एक बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में। 2020 में उन्होंने आरजेडी से चुनाव जीता, लेकिन 2022 में सजा के कारण उनकी सदस्यता चली गई। उपचुनाव में उनकी पत्नी नीलिमा देवी ने मैदान संभाला और जीत हासिल की। अब अनंत सिंह फिर से जेडीयू के टिकट पर मुकाबले में हैं।

भूमिहारों की राजनीतिक धरती

मोकामा को भूमिहारों की राजधानी कहा जाता है। यहां करीब 30 फीसदी से अधिक आबादी भूमिहार समुदाय की है। 1952 से अब तक यहां से जितने भी विधायक चुने गए हैं, लगभग सभी इसी समाज से रहे हैं – जगदीश नारायण सिंह से लेकर सरयू नारायण प्रसाद सिंह, कृष्णा शाही, दिलीप सिंह, सूरजभान सिंह और अनंत सिंह तक।

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भूमिहारों का यह वर्चस्व अन्य जातियों के लिए चुनौती बना रहा है। यहां यादव समुदाय करीब 20 फीसदी है, जो भूमिहारों के प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश करता रहा है। इसके अलावा राजपूत, कुर्मी, कोइरी, दलित और मुस्लिम मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

यादवों की चुनौती और टाल का बादशाह

भूमिहारों के वर्चस्व के बीच यादव समुदाय से चुनौती देने वाला नाम रहा **दुलारचंद यादव**। नब्बे के दशक में लालू यादव के उदय के साथ दुलारचंद ने मोकामा के **टाल इलाके** में अपनी सियासी पकड़ मजबूत की। पहलवानी से राजनीति में आए दुलारचंद ने दबंग छवि बनाई और यादव, ओबीसी व दलित मतदाताओं को अपने साथ जोड़ा।

अनंत सिंह और दिलीप सिंह के खिलाफ उन्होंने कई बार चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाए। 2019 में उन्हें ‘कुख्यात गैंगस्टर’ बताकर गिरफ्तार किया गया था। बावजूद इसके, मोकामा में उनकी सामाजिक पकड़ बनी रही। हाल की हत्या ने इस सियासी टकराव को फिर से उभार दिया है।

बाहुबली बनाम बाहुबली की लड़ाई

मोकामा में इस बार मुकाबला दिलचस्प है – वीणा देवी बनाम अनंत सिंह। दोनों भूमिहार समुदाय से हैं और दोनों के पीछे अपने-अपने बाहुबली परिवारों की ताकत है। वीणा देवी पहले मुंगेर से एलजेपी सांसद रह चुकी हैं और उन्हें सूरजभान सिंह का पूरा समर्थन हासिल है।

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वहीं, अनंत सिंह का जनाधार भूमिहारों के साथ-साथ कुछ पिछड़ी जातियों में भी है। 2020 में जब वह आरजेडी से चुनाव लड़े थे, तब जेडीयू के उम्मीदवार राजीव लोचन नारायण सिंह को सोनू-मोनू गैंग का समर्थन मिला था।

2022 के उपचुनाव में बीजेपी ने ललन सिंह की पत्नी सोनम देवी को टिकट दिया था। ललन सिंह को सूरजभान का करीबी माना जाता है, और उन्होंने 2005, 2010 और 2015 में अनंत सिंह को कड़ी टक्कर दी थी।

मोकामा : जहां राजनीति और बाहुबल साथ चलते हैं

मोकामा की राजनीति जातीय समीकरणों से ज्यादा बाहुबल और वर्चस्व की कहानी है। यहां सत्ता का रास्ता हमेशा बंदूक की नली और सामाजिक नेटवर्क से होकर गुजरता रहा है। चाहे सूरजभान सिंह हों या अनंत सिंह – दोनों ने सियासत को अपनी ताकत से परिभाषित किया है।

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दुलारचंद यादव की हत्या ने इस पारंपरिक टकराव को और गहरा कर दिया है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि मोकामा की राजनीति आज भी बाहुबलियों की छाया से बाहर नहीं निकल सकी है – जहां चुनावी संघर्ष अब भी वोट और वर्चस्व दोनों की जंग बना हुआ है।

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