
Bihar Election 2025. बिहार विधानसभा चुनाव में महिलाओं की भूमिका हमेशा से निर्णायक रही है। राज्य में मतदान प्रतिशत के लिहाज से महिलाएं पुरुषों से लगातार आगे रही हैं। यही कारण है कि सभी राजनीतिक दल उन्हें लुभाने के लिए तरह-तरह के वादे करते हैं, कभी आर्थिक सहायता की घोषणा, तो कभी सम्मान योजनाओं का एलान। लेकिन जब बात टिकट बंटवारे की आती है, तो महिलाओं को बराबरी का हिस्सा अब भी नहीं मिल पाता।
इस बार भी यही तस्वीर दिख रही है। बिहार में दो बड़े गठबंधन (एनडीए और महागठबंधन) ने मिलकर कुल 64 महिलाओं को टिकट दिया है। इनमें एनडीए से 34 और महागठबंधन से 30 महिला उम्मीदवार मैदान में हैं।
महागठबंधन में महिलाओं को सबसे ज्यादा टिकट राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने दिया है। पार्टी ने 24 महिलाओं को उम्मीदवार बनाया, हालांकि मोहनिया सीट से श्वेता सुमन का नामांकन रद्द होने के बाद यह संख्या घटकर 23 रह गई।
कांग्रेस ने सिर्फ 5 महिलाओं को टिकट दिया
कांग्रेस ने सिर्फ 5 महिलाओं को टिकट दिया – सोनबरसा से सरिता देवी, कोरहा से पूनम पासवान, हिसुआ से नीतू कुमारी, बेगूसराय से अमिता भूषण और राजा पाकर से प्रतिमा कुमारी।
महागठबंधन के अन्य दलों में वीआईपी ने एक महिला (अपर्णा कुमारी मंडल, बिहपुर से) को मौका दिया है। वहीं लेफ्ट दलों (सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई-एमएल) में केवल एक उम्मीदवार दीघा से सीपीआई-एमएल की दिव्या गौतम हैं।
भाजपा और जदयू ने 13-13 महिलाओं को टिकट दिया
एनडीए में भाजपा और जदयू दोनों ने 13-13 महिलाओं को टिकट दिया है। गठबंधन की अन्य सहयोगी पार्टियों में चिराग पासवान की एलजेपी (आर) ने 5 महिला उम्मीदवार उतारी हैं, जबकि तकनीकी कारणों से एक का नामांकन रद्द हुआ।
जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) ने 6 में से 2 सीटों पर महिलाओं को टिकट दिया – इमामगंज से दीपा कुमारी (मांझी की बहू) और अतरी से ज्योति देवी (समधन)।
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उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने अपनी पत्नी स्नेहलता कुशवाहा को सासाराम से उम्मीदवार बनाया है।
बिहार की राजनीति में नए चेहरे के तौर पर उभरे प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज ने इस बार 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें 25 महिलाएं शामिल हैं।
वहीं मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने इस बार 26 महिलाओं को टिकट दिया है – यह संख्या कई राष्ट्रीय दलों से अधिक है।
इससे पहले भी थी यही स्थिति
बता दें कि 2020 के विधानसभा चुनाव में कुल 370 महिलाओं ने मैदान में उतरकर हिस्सा लिया था, लेकिन केवल 26 ही विधानसभा तक पहुंच पाईं। जेडीयू ने उस समय 26 महिलाओं को टिकट दिया था, आरजेडी ने 16 और बीजेपी ने 13 को।
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2015 में 272 महिला उम्मीदवार थीं, जिनमें से 28 ने जीत दर्ज की थी। वहीं 2010 के चुनाव में कांग्रेस ने सर्वाधिक 32 महिलाओं को टिकट दिया, लेकिन एक भी जीत नहीं सकीं। जेडीयू की 21 और बीजेपी की 10 महिला उम्मीदवार उस बार विधायक बनीं।
वर्तमान में विधानसभा में सिर्फ 26 महिलाएं
राजनीति विश्लेषकों का कहना है कि बिहार की स्थानीय सरकारों में 1.4 लाख महिला जनप्रतिनिधि हैं। लेकिन वर्तमान में विधानसभा में सिर्फ 26 महिलाएं हैं। यह आंकड़ा बताता है कि पंचायतों से लेकर विधानमंडल तक महिलाओं की राजनीतिक यात्रा अभी अधूरी है। वह कहते हैं कि पंचायती स्तर पर 50 फीसदी आरक्षण से महिलाओं में राजनीतिक चेतना बढ़ी है।
आने वाले वर्षों में यह चेतना विधानसभा और संसद में भी दिखेगी, लेकिन फिलहाल टिकट वितरण में बड़ी पार्टियां अभी भी पुराने ढर्रे पर चल रही हैं।
टिकट देने में कंजूसी
बिहार में महिला मतदाताओं की संख्या और उनका मतदान उत्साह दलों के लिए निर्णायक हो चुका है। यही वजह है कि वे महिला सशक्तिकरण के नारे तो देते हैं, लेकिन टिकट देने में कंजूसी बरतते हैं।
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अगर यही स्थिति बनी रही, तो आने वाले चुनावों में महिलाएं अपने हिस्से की सियासी भागीदारी खुद तय करने की ओर बढ़ेंगी और तब पार्टियों के वादे नहीं, महिलाओं की संख्या तय करेगी सत्ता की दिशा।



