Retail Inflation Rate: फ्री राशन का असर महंगाई पर, सरकार ला रही नया फॉर्मूला

Retail Inflation Rate: सरकार खुदरा महंगाई दर (Retail Inflation) तय करने के मौजूदा तरीके में बदलाव पर विचार कर रही है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने इस दिशा में एक डिस्कशन पेपर जारी कर जनता से राय मांगी है। मुख्य सवाल यह है कि क्या पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (PDS) के तहत मुफ्त में दिए जाने वाले गेहूं, चावल जैसे अनाज को कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) में शामिल किया जाए।

क्या है सरकार का नया प्रस्ताव?

  • CPI की नई सीरीज के लिए बेस ईयर को 2012 से बदलकर 2024 करने का प्रस्ताव है।
  • नई सीरीज 2023-24 के हाउसहोल्ड कंजम्पशन एक्सपेंडिचर सर्वे पर आधारित होगी।
  • 2026 की पहली तिमाही से नई CPI सीरीज प्रकाशित करने की योजना है।
  • प्रस्तावित बदलाव में PDS और ओपन मार्केट प्राइसेज को मिलाकर एक यूनिफाइड इंडेक्स तैयार किया जाएगा।
  • मुफ्त दी जाने वाली वस्तुओं को ‘जीरो प्राइस’ मानते हुए उनके प्रभाव का आकलन किया जाएगा।

मुफ्त राशन को CPI में क्यों शामिल किया जाए?

  • IMF, वर्ल्ड बैंक और मंत्रालय के एक्सपर्ट ग्रुप ने इस मुद्दे पर विचार किया है।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि PDS के तहत मुफ्त अनाज का उपभोग पर बड़ा असर पड़ता है।
  • CPI का उपयोग केवल मौद्रिक नीति नहीं, बल्कि जीवन यापन की लागत, वेतन निर्धारण, पेंशन और वेलफेयर स्कीमों में भी होता है।
  • मुफ्त राशन से खुले बाजार में कीमतों पर भी असर पड़ता है, इसलिए इसे CPI में शामिल करना तर्कसंगत होगा।

वर्तमान स्थिति क्या है?

  • मौजूदा CPI सीरीज में मुफ्त राशन को शामिल नहीं किया जाता क्योंकि उपभोक्ता इन पर खर्च नहीं करते।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मुफ्त वस्तुओं को CPI में शून्य वेटेज दिया जाता है।
  • भारत में 1 जनवरी 2023 से शुरू हुई मुफ्त राशन योजना का दायरा काफी बड़ा है—करीब 75% ग्रामीण और 50% शहरी आबादी को कवर करती है।
  • अन्य देशों की तुलना में भारत की सोशल ट्रांसफर स्कीम्स अधिक व्यापक हैं।

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जनता से राय मांगी गई

मंत्रालय ने इस विषय पर 22 अक्टूबर तक राय देने का अवसर दिया है। यह कदम CPI को अधिक समावेशी और वास्तविक बनाने की दिशा में एक अहम पहल माना जा रहा है।

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