Prayagraj News-जिनसे होती थी प्रयागराज के जमुना पार की पहचान आज वह भी लम्बी कतार के शिकार नहीं मिल पा रही खाद

Prayagraj News-ऐसा कहना कहीं से अतिश्योक्ति नहीं होगा की जनपद में यमुना पार धान के कटोरे में अपनी अग्रणी भूमिका नहीं रखता। जनपद में सबसे ज्यादा धान की पैदावार में यमुना पार के अन्नदाताओं की अहम भूमिका होती है। जों विभिन्न प्रकार के धान की प्रजातियां पैदा करके जनपद को गौरवान्वित ही नहीं करते अपितु लोगों के पेट पोषक या भरण पोषण के अहम किरदार है।

किन्तु आज वह भी सरकारी योजनाओं के ऐसे शिकार हुए कि खुद को अपेक्षित महसूस करते दिखते हैं,देखना है तो सहकारी समितियों पर बाजार में खादों की दुकानों पर लगीं लम्बी कतारें माताओं, बहनों के साथ नम्बर लगाने में अपनी पहचान बनाने में जुटे देखें जा सकतें हैं।

ऐसा नहीं कि यह समस्या महज एक तहसील की है बल्कि इससे परे जमुना पार के अन्नदाताओं के चेहरे पर चिंता स्पष्ट देखीं जा सकती है। जहां एक ओर खेत की निराई करवाने के लिए धन जुटाना वहीं दूसरी ओर खाद खरीदने के लिए धन जुटाना वह भी इस महीने में किसानों के लिए पत्थर पर दूब जमानें जैसा साबित हो रहा है।

अब अन्नदाता सुबह से साधन सहकारी समितियों पर जब खाद की कतार में खड़ा होकर नम्बर पर पहुंचता है तो हाथ में आधार कार्ड व खतौनी और खाद सिर्फ दो बोरी, जों उनके लिए महज ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही है। कारण जमुना पार में पांच बीघा से लेकर पचास बीघे तक का कास्तकार होना और खतौनी सिर्फ एक ब्यक्ति के नाम से होने के कारण व शासन की नीतियों का फायदा खुले बाजार में खादों की मनमानी रेट पर विक्री से अन्नदाता पूरी तरह से टूटता साबित हो रहा है। क्योंकि उपज बढ़ाने के लिए खाद की आवश्यकता जो उनको महंगे दामों पर खुले बाजार से लेने को बाध्य कर दिया।

ऐसा नहीं कि किसानों को पूर्व में फ्री में खाद मिलती रही नहीं बल्कि साधन सहकारी समितियों के सदस्य होंने के नाते ऋण सीमा के अनुसार किसानों को आसानी से खाद उपलब्ध हों जाया करतीं रहीं और किसान फसल तैयार होने के बाद अपने ऋण की अदायगी कर देते थे और खुशहाली से अपनी फसल तैयार करने में ही लगे रहते थे।

किन्तु आज शासन की नीतियों ने उन अन्नदाताओं को खून के आशू रोने को मजबूर कर दिया। यदि ऐसी ही नितियां बनतीं रहीं तों वह दिन दूर नहीं जब अन्नदाताओं का प्रयास असफल न साबित हो जाय, सरकार को अन्नदाताओं की समस्यायों पर गम्भीरता से मंथन की आवश्यकता आ पड़ी है।

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रिपोर्ट-प्रयागराज से राजेश मिश्रा की

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