
Prayagraj News: वृंदावन के श्री बांके बिहारी मंदिर से जुड़े सेवायतों ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 25 मई 2025 को जारी अध्यादेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि सरकार इस अध्यादेश के जरिए मंदिर के संचालन पर परोक्ष रूप से नियंत्रण स्थापित करना चाहती है।
हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई टालते हुए अगली तारीख 9 सितंबर 2025 तय की है। कोर्ट ने यह निर्णय इसलिए लिया क्योंकि इसी विषय पर एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में पहले से लंबित है।
सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता एम.सी. चतुर्वेदी, अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता रामानंद पांडेय और राज्य अधिवक्ता राजीव कुमार सिंह ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में पहले से अध्यादेश को चुनौती दी जा चुकी है, ऐसे में समानांतर रूप से हाईकोर्ट में सुनवाई उचित नहीं होगी।
वहीं याचीपक्ष ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट में उठाए गए मुद्दे अलग हैं और इस याचिका में अन्य संवैधानिक पहलुओं को चुनौती दी गई है।
याचिका में कहा गया है कि बांके बिहारी मंदिर एक निजी मंदिर है, जिसका संचालन परंपरागत रूप से सेवायत परिवार करता आ रहा है। मंदिर पर सेवायतों का पूर्ण अधिकार है और सिविल कोर्ट के आदेशों में भी यह मान्यता दी जा चुकी है।
याची पक्ष का कहना है कि सरकार का यह अध्यादेश मंदिर के प्रशासनिक अधिकारों को छीनने का प्रयास है, जो मंदिर की स्वतंत्रता, धार्मिक परंपराओं और संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 के तहत प्राप्त धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
याचिका में अध्यादेश को असंवैधानिक बताते हुए उसे निरस्त करने की मांग की गई है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के पूर्ववर्ती आदेशों का हवाला देते हुए कहा गया है कि सरकार की मंशा मंदिर पर नियंत्रण पाने की है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
अब इस मामले में अगली सुनवाई 9 सितंबर 2025 को होगी। तब तक सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई की प्रगति को भी ध्यान में रखा जाएगा।
रिपोर्ट: राजेश मिश्रा प्रयागराज