Prayagraj News: ऋषि व्याख्यान माला का शुभारम्भ: ज्ञान के पुंज प्रोफेसर त्रिपाठी का उद्बोधन

Prayagraj News: इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ऋषि व्याख्यान माला के 2025-26 सत्र के प्रथम व्याख्यान के रूप में प्रोफेसर मिथिला प्रसाद त्रिपाठी कुलपतिचर ,महर्षिपाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय,उज्जैन के द्वारा भारतीय ज्ञान परम्परा का वैश्विक महत्त्व एवं साम्प्रतिक प्रासङ्गिकता विषय पर विशिष्ट व्याख्यान सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम के प्रारम्भ में विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रयाग नारायण मिश्र के द्वारा अतिथियों का स्वागत किया गया तत्पश्चात विभाग के आचार्य प्रो.अनिल प्रताप गिरि के द्वारा स्वागत भाषण करते हुए कहा गया कि व्याख्यान के विशिष्ट विद्वान् प्रोफेसर मिथिला प्रसाद त्रिपाठी जी संस्कृत एवं भारतीय ज्ञान परम्परा के विशिष्ट विद्वान् हैं ।आप पचास से अधिक ग्रन्थों के प्रणेता हैं तथा राष्ट्रपति पुरस्कार सहित बीस से अधिक राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त कर चुके हैं आपने पच्चीस वर्षों से अधिक का अध्यापन कार्य करते हुए अनेक प्रतिष्ठित पदों को अलंकृत भी किया है।

कार्यक्रम में भारतीय ज्ञान परम्परा पर विस्तृत रूप से विवेचन प्रस्तुत करते हुए मुख्य वक्ता प्रोफेसर मिथिला प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि

भारतीय ज्ञान परम्परा मे भारत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि

भृ भरणे धातु एवं हिन्दी में भा अर्थात् ज्ञान में रत अर्थात् संलग्न रहने वाला भारत कहलाता है। अत: भारत सर्वदा से ही ज्ञान का प्रकाशक तथा प्रसारक रहा है आपने बताया कि ज्ञान उत्पन्न न होकर प्रकट होता है।

भारतीय ज्ञान का श्रीगणेश वेद से होता है । वेद का प्रथम देवता अग्नि है तथा यज्ञ की साधना भारतीय ज्ञान परम्परा का माध्यम है । इसीलिए ऋग्वेद के प्रथम मंत्र में अग्नि की स्तुति करते हुए ज्ञान प्राप्त की कामना की गई है।पुराण वेद के व्याख्या के रूप में भारतीय ज्ञान परम्परा में प्राप्त होते हैं ऐसे समस्त पुराण वेदों के उपबृहण हैं- इतिहास पुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत्।

अन्धकार से भरे हुए लोक में वाणी रुपी प्रकाश से प्रकाशित होता है सत्य की खोज के लिए सूर्य की उपासना की गयी है वैदिक मन्त्रों में समस्त संस्कृति निहित है । इसी प्रकार से स्मृति ग्रन्थ भी वैदिक साहित्य के व्याख्या के रूप में तथा भारतीय परम्परा को आगे बढ़ते हुए दिखलाई पड़ते हैं इस प्रकार भारत सर्वदा से ही ज्ञान का स्रोत रहा है एवं मनुष्य को ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता रहा है। संस्कृत में भारतीय ज्ञान परम्परा निहित है। और भारतीय ज्ञान परम्परा में साहित्य के अतिरिक्त आयुर्वेद रसायन शास्त्र विज्ञान तथा गणित आदि विभिन्न प्रकार के विषयों का समावेश भी दिखलायी पड़ता है गणित के अन्तर्गत भास्कराचार्य की लीलावती ,एवं बीजगणित भारतीय ज्ञान परम्परा के श्रेष्ठ ग्रन्थ के रूप में दिखाई पड़ते हैं । कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रयाग नारायण मिश्र ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा समस्त विश्व को पुरातन काल से ही आलोकित करती रही है आए हुए मुख्य वक्ता के द्वारा इस विषय पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला गया है।

कार्यक्रम मे धन्यवाद ज्ञापन विभाग के सह आचार्य डॉ विनोद कुमार ने किया और उन्होंने कहा कि संस्कृत विभाग की समृद्ध परम्परा भारतीय ज्ञान राशि के रूप में दिखाई पड़ती है।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में विभाग के छात्र चञ्चल मिश्रा के द्वारा पौराणिक मङ्लाचरण तथा छात्रा कलश पाण्डेय के द्वारा लौकिक मङ्लाचरण किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. लेखराम दन्नाना के द्वारा किया गया ।

इस अवसर पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के आचार्य शिव प्रसाद शुक्ल, प्रो .राजेश कुमार गर्ग के अतिरिक्त संस्कृत विभाग डॉ निरूपमा त्रिपाठी , डॉ विनोद कुमार , डॉ रश्मि यादव, डॉ रजनी गोस्वामी, डॉ सन्त प्रकाश तिवारी, डॉ भूपेंद्र बालखडे, डॉ तेज प्रकाश चतुर्वेदी, डॉ सन्दीप यादव, डॉ अनिल कुमार, डॉ सतरुद्र प्रकाश, नन्दिनी रघुवंशी,डॉ. मीनाक्षी जोशी, डॉ. आशीष कुमार त्रिपाठी डॉ कल्पना कुमारी, डॉ ललित कुमार आदि प्राध्यापकगण एवं शताधिक संख्या में शोध छात्र एवं छात्राएं एवं विभाग के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

रिपोर्ट: राजेश मिश्रा प्रयागराज

Show More

Related Articles

Back to top button