
EducationReality- जनपद अयोध्या के एक छोटे से गाँव परसपुर सथरा से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने शिक्षा जगत के साथ-साथ सोशल मीडिया को भी चौंका दिया है। गाँव के निवासी अनूप तिवारी ने दावा किया था कि उन्होंने NEET परीक्षा में ऑल इंडिया 59वीं रैंक हासिल की है। दावा वायरल हुआ, मीडिया ने कवर किया, गाँव में जश्न हुआ — लेकिन जब असल मार्कशीट सामने आई तो सच्चाई ने सबको सन्न कर दिया।
दरअसल, अनूप ने 720 में से सिर्फ 80 अंक हासिल किए थे, और उनके द्वारा किया गया रैंक का दावा पूरी तरह से झूठा निकला।
जश्न से झटका तक की कहानी:
जैसे ही अनूप के “टॉपर” बनने की खबर फैली, गाँव में मिठाइयाँ बंटीं, बधाइयों का तांता लग गया और मीडिया में “गाँव का लाल” जैसे शीर्षक गूंजने लगे। लेकिन जब कुछ स्थानीय लोगों ने रैंक की सच्चाई जाननी चाही और वास्तविक परिणाम की पड़ताल की, तो सामने आई हकीकत ने सबको हैरान कर दिया।
सवाल उठते हैं…
अब बड़ा सवाल ये है कि ऐसा झूठ इतना जल्दी कैसे सच मान लिया गया? बिना किसी आधिकारिक पुष्टि के एक गाँव, मीडिया और स्थानीय प्रशासन कैसे इस “सफलता” का जश्न मनाने लगा?
मीडिया की भूमिका पर भी सवाल:
बिना जांच-पड़ताल के इस खबर को प्रमुखता देने वाले कई छोटे मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी सवाल उठने लगे हैं। स्थानीय पत्रकारों और सोशल मीडिया यूज़र्स का कहना है कि “वेरिफिकेशन के बिना ही खबरें फैलाना एक खतरनाक प्रवृत्ति बन चुका है।”
गाँव में अब माहौल बदला-बदला सा:
जिन घरों में लड्डू बंटे थे, अब वहाँ चुप्पी छाई हुई है। लोग पूछ रहे हैं कि “क्या हम इतने भोले हैं या सच जानना ही नहीं चाहते?” गाँव के कुछ बुजुर्गों का कहना है कि अनूप से ज्यादा गलती उन लोगों की है जो बिना पूछे उसे हीरो बना बैठे।
यह घटना एक आईना है, जो दिखाती है कि फर्जीवाड़ा सिर्फ दस्तावेज़ों तक सीमित नहीं, अब रैंकिंग और पहचान में भी घुस चुका है। समाज को अब तथ्यों पर आधारित सोच अपनानी होगी, और मीडिया को अपनी ज़िम्मेदारी को और गंभीरता से निभाना होगा।