
Prayagraj News-इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायिक रिक्तियों को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई से बुधवार को न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी ने स्वयं को अलग कर लिया।
यह चौथी बार है जब इस जनहित याचिका की सुनवाई न्यायाधीशों की स्वयं को अलग करने के कारण स्थगित हुई है। सबसे पहले स्वयं मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले की सुनवाई से इनकार किया था। इसके बाद याचिका न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी की पीठ को सौंपी गई लेकिन एक तकनीकी त्रुटि के कारण यह न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता के समक्ष सूचीबद्ध हो गई। इसके बाद इसे पुनः न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया।
न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी एवं न्यायमूर्ति अनिल कुमार की खंडपीठ ने याची वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश त्रिवेदी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नक़वी, अधिवक्ता शाश्वत आनंद व सैयद अहमद फैज़ान की दलीलें सुनीं और माना कि याचिका दाखिल होने के बाद से अब तक कुछ न्यायाधीशों की नियुक्ति हो चुकी है। यह भी रेखांकित किया कि न्यायालय ने स्वयं इस विषय पर न्यायिक संज्ञान भी लिया है। साथ ही न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी ने यह स्पष्ट किया कि अब वह हाईकोर्ट कॉलेजियम का हिस्सा बन चुके हैं इसलिए इस याचिका पर सुनवाई करना उचित नहीं होगा और इसी आधार पर उन्होंने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।
गौरतलब है कि 15 मई को न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र के सेवानिवृत्त होने के बाद न्यायमूर्ति त्रिपाठी, मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली व न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता के साथ हाईकोर्ट कॉलेजियम में शामिल हो गए हैं।
इससे पहले जब न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी कॉलेजियम के सदस्य नहीं थे और वरिष्ठता क्रम में चौथे स्थान पर थे, तब मुख्य न्यायाधीश ने इस याचिका को उनकी अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया था। पिछली सुनवाई में न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी ने इस विषय पर चिंता व्यक्त हुए राज्य सरकार तथा हाईकोर्ट प्रशासन से स्पष्ट निर्देश प्राप्त करने को कहा था। उन्होंने इस मामले को 21 मई के लिए फ्रेश टॉप 10 मामलों में सूचीबद्ध करने का निर्देश भी दिया था।
जनवरी 2025 में दाखिल इस याचिका में मांग की गई है कि हाईकोर्ट में रिक्त न्यायिक पदों को समयबद्ध और पारदर्शी प्रक्रिया के तहत भरा जाए। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 160 तक पहुंचे, ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और कार्यक्षमता सुनिश्चित हो सके। याचिका दाखिल किए जाने के समय इलाहाबाद हाईकोर्ट केवल 79 न्यायाधीश कार्य कर रहे थे, जो कुल स्वीकृत संख्या का मात्र 49 प्रतिशत थे। हाल ही में कुछ नियुक्तियों के बाद यह संख्या 87 तक पहुंची है लेकिन अब भी हाईकोर्ट केवल 55 प्रतिशत क्षमता पर कार्य कर रहा है जबकि 11.5 लाख से अधिक मामले लंबित हैं।
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रिपोर्ट: राजेश मिश्रा