Allahabad High Court-महिला शारीरिक संबंध की आदी हो तब भी उससे दुष्कर्म अक्षम्यः हाई कोर्ट

Allahabad High Court- इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा भले ही महिला शारीरिक संबंध की आदी हो लेकिन उसके साथ दुष्कर्म नहीं किया जा सकता। और आरोपित को बरी करने के सत्र अदालत इटावा के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की अपील मंजूर कर ली और सात साल की कैद व 50हजार रूपए जुर्माने की सजा सुनाई है।कोर्ट ने कहा आरोपित पहले ही 6साल 9माह 11दिन की सजा काट चुका है। इसलिए शेष सजा भुगतने को समर्पण करें। कोर्ट ने कहा, यह जरूरी नहीं कि पीड़िता पर आतंरिक व बाह्य चोटों के निशान मिलें। सत्र अदालत ने साक्ष्य समझने में गलती की।और दुष्कर्म आरोपी को बरी कर दिया।

यह फैसला न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति संदीप जैन की खंडपीठ ने दिया है।
हाईकोर्ट ने पुष्पेंद्र उर्फ गब्बर को बंदूक का भय दिखाते हुए पीड़िता का बलात्कार करने का दोषी पाया।और सजा सुनाई ।खंडपीठ ने कहा, पीड़िता का बयान दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त है, जब तक उसके बयान में कोई उचित संदेह नहीं उभरता, तब तक ट्रायल कोर्ट अपीलकर्ता के अपराध के अलावा किसी अन्य निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता था।”

अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, 11 सितंबर, 2016 को पीड़िता अपने मंगेतर ‘एस’ और छोटे भाई ‘आर’ के साथ अपने अपार्टमेंट में थी। तभी अभियुक्त बन्दूक के साथ घुस आया। उसने उसके मंगेतर तथा भाई को कपड़े उतारने पर मजबूर कर उनका वीडियो बनाया। फिर मंगेतर को घर से बाहर कर बलात्कार किया। इसके बाद आरोपित ने पीड़िता को धमकी दी कि यदि वह उसके साथ नहीं गई तो उसे तीसरी मंजिल से वह धक्का दे देगा। भयवश पीड़िता आरोपित के साथ चली गई जहां उसे बेसुध हालत में छोड़ दिया गया। जैसे तैसे घर लौटने पर उसने आपबीती बताई। आरोपी को बरी किए जाने के खिलाफ राज्य सरकार ने अपील दायर की थी। न्यायालय ने कहा कि घटना का वर्णन प्राथमिकी दर्ज होने से लेकर सीआरपीसी की धारा 161 व 164 के तहत बयानों और यहां तक मुकदमे की सुनवाई के दौरान एक जैसा रहा।

कुल 54 पेज के फैसले में न्यायमूर्ति जैन ने अलग लेकिन सहमति में निर्णय लिखा। खंडपीठ ने ट्रायल कोर्ट के इन निष्कर्षों में खामियां पाईं, जिसने अभियोजन पक्ष को यह कहते हुए अनुसना कर दिया था कि अभियुक्त और शिकायतकर्ता के बीच पहले से दुश्मनी थी तथा प्राथमिकी अत्यधिक देरी से दर्ज की गई मेडिकल रिपोर्ट बलात्कार के अपराध/घटना का समर्थन नहीं करती। खंडपीठ ने यह देखते हुए कि आरोपित छह वर्ष 9 महीने तथा 11 दिन (वास्तविक) तक कारावास में रहा है, जेल अधीक्षक, जिला जेल, इटावा (यूपी) को निर्देश दिया कि वह छूट के साथ पहले से काटी गई सजा की गणना करें। साथ ही 30 दिनों के भीतर ट्रायल कोर्ट के माध्यम से आरोपित को सूचित कराएं। वर्तमान में जमानत पर चल रहे आरोपित को यदि कोई सजा बची हो तो 30 जुलाई तक आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया है।

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रिपोर्ट-राजेश मिश्रा।

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