
Lucknow: किरायेदार और मकान मालिक के बीच के विवाद अक्सर लंबा खिंचते हैं, लेकिन लखनऊ में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने सभी सीमाएं पार कर दीं। 40 वर्षों तक किरायेदार ने मकान पर कब्जा जमाए रखा, न किराया दिया और न ही मकान खाली किया। आखिरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सख्त रुख अपनाते हुए किरायेदार पर 15 लाख रुपये का हर्जाना ठोका है।
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने किरायेदार वोहरा ब्रदर्स की याचिका खारिज करते हुए यह सजा सुनाई। साथ ही कोर्ट ने लखनऊ के डीएम को निर्देश दिया कि यदि तय समय (दो महीने) में हर्जाना नहीं भरा जाता, तो कानूनी कार्रवाई करते हुए वसूली की जाए।
1982 से शुरू हुआ विवाद, एक पीढ़ी रह गई वंचित
इस मामले की शुरुआत 1982 में हुई जब मकान मालकिन कस्तूरी देवी ने फैजाबाद रोड स्थित संपत्ति को खाली कराने की मांग की। किरायेदार ने मना कर दिया। उस समय वोहरा ब्रदर्स महज 187.50 रुपये महीना किराया दे रहे थे।
कस्तूरी देवी ने संबंधित प्राधिकरण के पास अर्जी दी, जिसे 1992 में खारिज कर दिया गया। इसके खिलाफ उन्होंने अपील की और 1995 में फैसला उनके पक्ष में आया। मगर किरायेदार ने मामला हाईकोर्ट में पहुंचा दिया, जहां यह याचिका करीब 30 साल तक लंबित रही।
‘मुकदमों के जाल में फंसा दिया, अधिकार छीने गए’
कोर्ट ने अपने फैसले में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि किरायेदार ने 1979 से कोई किराया नहीं दिया। जब 1981 में मकान मालकिन ने अपने बेटे के लिए व्यवसाय शुरू करने के मकसद से मकान खाली करने को कहा, तो किरायेदार ने जानबूझकर मामले को कानूनी पेंच में फंसा दिया।
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जज ने यह भी कहा कि इस लापरवाही और हठधर्मिता के कारण एक पूरी पीढ़ी को उसके अधिकारों से वंचित रहना पड़ा। यह मामला उन सभी के लिए एक सबक है, जो किरायेदारी के नाम पर दशकों तक अवैध कब्जा जमाए रखते हैं।