देव सूर्य मंदिर : प्राचीन वैभव और आस्था का अद्वितीय सूर्य उपासना केंद्र

संजय द्विवेदी की खास रिपोर्ट

देव सूर्य मंदिर, औरंगाबाद बिहार

बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित देव सूर्य मंदिर भारत के प्राचीनतम सूर्य उपासना स्थलों में एक है, जो अपनी अद्वितीय स्थापत्य कला, पौराणिक महत्ता और धार्मिक आस्था के लिए विश्व-प्रसिद्ध है। देव स्थित यह मंदिर गुप्तकालीन शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है, जहाँ सूर्यदेव की तीन दिशाओं—पूर्व, पश्चिम और दक्षिण—में स्थापित मूर्तियाँ इसे अद्वितीय बनाती हैं।

पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल में दानवीर कर्ण ने इसी पवित्र स्थल पर सूर्यदेव की कठोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने उन्हें दिव्य कवच-कुंडल का आशीर्वाद प्रदान किया था। एक अन्य लोककथा में वर्णित है कि सूर्यदेव ने इस क्षेत्र को असुरों के आतंक से मुक्ति दिलाई, जिसके उपरांत कृतज्ञ जनसमुदाय ने इस दिव्य स्थान पर सूर्य मंदिर की स्थापना की।देव सूर्य मंदिर में प्रतिवर्ष छठ महापर्व के अवसर पर लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से पहुँचते हैं और उदयमान व अस्त होते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। सूर्योपासना का यह पावन स्थल न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मंदिर परिसर में पूजा-अर्चना, धार्मिक अनुष्ठानों और छठ पर्व की भव्य तैयारियों के साथ यहाँ का वातावरण सदैव भक्तिमय बना रहता है। देव सूर्य मंदिर बिहार की प्राचीन गौरवशाली सूर्य-परंपरा का अनमोल धरोहर है, जो भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और आस्था का अद्वितीय प्रतीक है।

कर्ण की उपासना से संबंधित कथा

लोकमान्यता के अनुसार महाभारत के दानवीर कर्ण प्रतिदिन पूर्व दिशा की ओर मुख करके सूर्य की उपासना करते थे। कहा जाता है कि कर्ण ने इसी स्थान पर सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था।
उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उन्हें कवच-कुंडल का वरदान दिया, जो जन्म से ही उनके शरीर पर थे और अद्भुत शक्ति प्रदान करते थे।

इसी स्थान को आगे चलकर “देव” के नाम से जाना गया, जहाँ सूर्यदेव की उपासना की परंपरा निरंतर चली।

असुरों के अत्याचार से मुक्ति की कथा

एक अन्य कथा के अनुसार, प्राचीन काल में इस क्षेत्र में दानवों,असुरों का आतंक था। जनमानस सूर्यदेव से प्रार्थना करता था।सूर्य भगवान प्रकट हुए और असुरों का संहार कर लोगों को राहत प्रदान की।उसी स्थान पर आभारस्वरूप लोगों ने सूर्यदेव का मंदिर स्थापित किया। इस कथा के कारण देव सूर्य मंदिर को “आरोग्य स्थल” भी माना गया—जहाँ सूर्योपासना से रोगों का नाश होता है।

त्रेतायुग की रथ यात्रा कथा

कथाओं के अनुसार त्रेतायुग में सूर्यदेव सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर देवकुंड (देव) आए थे।
यहाँ उन्होंने अपने दिव्य प्रकाश से अंधकार तथा रोगों का नाश किया।
तभी से यहाँ छठ पर्व का विशेष महत्व है—क्योंकि माना जाता है कि सूर्यदेव यहाँ सीधे भक्तों की मनोकामनाएँ सुनते हैं।

स्थापत्य से जुड़ी मान्यता

मंदिर का निर्माण कब हुआ, इस पर विभिन्न धारणाएँ हैं, किंतु माना जाता है कि इसका निर्माण गुप्तकाल या उससे भी पहले हुआ।बाद में मौर्य और पाल राजाओं ने इसका जीर्णोद्धार कराया।प्रतिमा की स्थापना स्वयं विश्वकर्मा या सूर्यवंशी राजाओं द्वारा मानी जाती है।

भारत प्रमुख सूर्य मंदिर की संक्षिप्त इतिहास

नीचे चार सूर्य मंदिरों की स्थापना–काल कालक्रम की तुलना साफ़-साफ़ दी जा रही है—किसका निर्माण पहले माना जाता है।

भारत के प्रसिद्ध तीनों सूर्य मंदिरों का कालक्रम देव सूर्य मंदिर, औरंगाबाद बिहार

निर्माण काल ।अधिकांश इतिहासकार मानते हैं कि इसका मूल निर्माण 4–5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के समय हुआ।कई परंपराएँ इसकी उत्पत्ति को त्रेतायुग या महाभारत काल से भी जोड़ती हैं, लेकिन ऐतिहासिक दृष्टि से इसका स्पष्ट स्थापत्य गुप्तकालीन है।

मार्तंड सूर्य मंदिर — कश्मीर

8वीं शताब्दी

ललितादित्य द्वारा निर्मित

आज खंडहर रूप में बिराजमान है।

मोढेरा सूर्य मंदिर, गुजरात

निर्माण काल — 11th Century (1026–1027 AD)
इसे सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम ने बनवाया था।
इसका निर्माण शिवाजी के पहले इस क्षेत्र में हुआ और इसकी स्थापत्य शैली चालुक्य,सोलंकी कला पर आधारित है।

कोणार्क सूर्य मंदिर, ओडिशा

निर्माण काल — 13th Century (1250 AD के आसपास गंगा वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम ने इसका निर्माण करवाया।यह वास्तुकला और कलात्मक दृष्टि से भारत के सबसे भव्य स्थलों में से एक है, पर तीनों में सबसे बाद में बना।

गौरतलब है कि देव सूर्य मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता की प्राचीन सूर्य–उपासना, कला, स्थापत्य और लोक-आस्था का जीवंत प्रतीक है। इसकी ऐतिहासिक गहराई, सांस्कृतिक विरासत और स्थापत्य की विशिष्टता इसे भारत के महानतम मंदिरों में शुमार करती है।

बिहार के हृदय में स्थित यह मंदिर आज भी वैसी ही भक्ति, ऊर्जा और दिव्यता का केंद्र है, जैसा सदियों पहले रहा होगा ,और यही इसकी सबसे बड़ी पहचान है।

मुख्य समीक्षाएँ और विशेषताएं:

  • आस्था और धार्मिक महत्व: यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है और छठ पूजा के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। कई श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं पूरी होने पर यहाँ छठ पूजा करते हैं।
  • अनोखी वास्तुकला: मंदिर पूर्वाभिमुख (पूर्व की ओर) न होकर पश्चिमाभिमुख (पश्चिम की ओर) है, जो इसे अन्य सूर्य मंदिरों से अलग बनाता है।
  • उत्कृष्ट शिल्प कला: मंदिर की वास्तुकला और नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है। पत्थरों को तराशकर इसे बनाया गया है और इसमें नागर शैली की वास्तुकला की झलक दिखती है, जिसमें कमलनुमा शिखर और पिरामिडनुमा छत शामिल हैं।
  • धार्मिक और पौराणिक कथाएं:
    • एक पौराणिक मान्यता के अनुसार, औरंगजेब ने इसे तोडने का प्रयास किया, तो मंदिर का मुख रात भर में पूर्व से पश्चिम की ओर घूम गया, जिससे मुगल शासक नतमस्तक हो गए।
    • एक अन्य कथा के अनुसार, कुष्ठ रोग से पीड़ित राजा ऐल ने सूर्यकुंड में स्नान के बाद मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • अन्य विशेषताएं:
    • यहाँ एक सूर्यकुंड है, जिसमें ‘नहाय-खाय’ और ‘अर्घ्य’ के दौरान भक्त स्नान करते हैं।
    • यहां मुंडन के लिए भी एक प्रसिद्ध स्थल है।
  • पर्यटन और दर्शक: यह बिहार के प्रमुख आध्यात्मिक स्थलों में से एक है। यूनेस्को विश्व धरोहर केंद्र ने भी इसे भारत के सबसे प्रसिद्ध ब्राह्मण पूजा स्थलों में से एक बताया है, UNESCO World Heritage Centre
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