छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह प्रकृति और मानव के बीच सामंजस्य का पर्व है। इस दौरान सभी भक्त पूरे उत्साह और भक्ति के साथ इस महापर्व को मनाते हैं। छठ पूजा, जिसे छठी मैया की पूजा के रूप में भी जाना जाता है, भारत के पूर्वी राज्यों जैसे बिहार, झारखंड, और उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से महापर्व के रूप मनाया जाता है। वर्तमान में छठ पूजा सिर्फ बिहार और आसपास के राज्यों तक ही सीमित नहीं है। बिहार की बेटी जिन राज्यों या देश में रह रही हैं वहां तक छठ पूजा को लोक आस्था के रूप मनाया जा रहा है। यह पर्व सूर्य देवता और छठी मैया की आराधना के लिए प्रसिद्ध है। इस चार दिवसीय महापर्व में शुद्धता, संयम और आस्था का विशेष महत्व होता है। छठ पूजा एक ऐसा पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व न केवल आस्था और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि जीवन में अनुशासन, शुद्धता और सामाजिक एकता की भावना को भी प्रबल करता है। इस वर्ष छठ पूजा के अवसर पर सभी भक्तों को छठी मैया और सूर्य देव की विशेष कृपा प्राप्त हो, ऐसी शुभकामनाओं के साथ आइए छठ पूजा के विभिन्न चरणों की विस्तृत जानकारी प्राप्त करें।
नहाय-खाय (पहला दिन) :
छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन व्रती गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान कर शुद्धता का पालन करते हुए शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन लौकी की सब्जी, चने की दाल और भात को विशेष रूप से बनाया जाता है।
खरना (दूसरा दिन) :
खरना का दिन छठ पर्व का दूसरा महत्वपूर्ण दिन होता है। व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को गुड़ और चावल से बनी खीर का भोग छठी मैया को अर्पित करते हैं। इसके बाद व्रती इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं और अन्य परिवार के सदस्य भी महाप्रसाद ग्रहण करते हैं।
डाला छठ (तीसरा दिन) :
डाला छठ, छठ पर्व का तीसरा दिन, संध्या सूर्य अर्घ्य के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। इस दिन व्रती दिनभर निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह अनुष्ठान नदियों, तालाबों या अन्य जलाशयों के किनारे किया जाता है। संध्या अर्घ्य के दौरान सूर्य देवता की पूजा के साथ-साथ छठी मैया की आराधना की जाती है। व्रतियों द्वारा सूर्य को अर्घ्य देने का यह विधान इस बात का प्रतीक है कि अस्त होते सूर्य में भी उतनी ही ऊर्जा और महत्व है जितना उगते सूर्य में। इस अवसर पर व्रती और उनके परिवारजन पारंपरिक गीत गाते हैं, प्रसाद चढ़ाते हैं और समर्पण एवं भक्ति के साथ पूजा को संपन्न करते हैं।
सूर्य अर्घ्य (चौथा दिन) :
पर्व का अंतिम दिन उषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती सुबह-सवेरे उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इसके बाद व्रती पारण करते हैं और अपने उपवास को तोड़ते हैं। इस दिन का महत्व खास होता है क्योंकि उगते सूर्य को अर्घ्य देना छठ पूजा की प्रमुख परंपरा है।
छठी मैया और सूर्य देव की महिमा :
छठ पूजा में छठी मैया और सूर्य देवता की आराधना का विशेष महत्व है। मान्यता है कि छठी मैया की पूजा से संतान प्राप्ति, रोगों से मुक्ति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। सूर्य देव को ऊर्जा और स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है, इसलिए उनकी उपासना से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
छठ पूजा का सांस्कृतिक महत्व :
छठ पूजा न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि इसका सांस्कृतिक महत्व भी काफी गहरा है। यह पर्व सामाजिक एकता, शुद्धता और अनुशासन का प्रतीक है। छठ पूजा के दौरान सामूहिक रूप से घाटों पर पूजा की जाती है, जिससे सामाजिक सद्भाव और आपसी सहयोग की भावना प्रबल होती है। इस अवसर पर लोग अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं और चारों ओर स्वच्छता का वातावरण बनाते हैं।
पर्यावरण संरक्षण और छठ पूजा :
छठ पूजा पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देती है। इस पर्व के दौरान प्राकृतिक जलाशयों, नदियों और तालाबों की साफ-सफाई की जाती है, जिससे जल स्रोतों को प्रदूषण मुक्त रखने में मदद मिलती है। इसके अलावा, पूजा में उपयोग किए जाने वाले प्रसाद जैसे ठेकुआ, चावल के लड्डू, और फलों में किसी भी प्रकार के हानिकारक रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता। छठ पूजा के दौरान बनने वाले सारे प्रसाद व्रती द्वारा स्वयं घर पर ही बनाए जाते हैं। इस दौरान शुद्धता और पवित्रता का पूर्ण पालन किया जाता है।
छठ पूजा में बांस के सूप और गन्ने का महत्व :
छठ पूजा में बांस के सूप और गन्ने का विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। बांस का सूप, जिसे व्रती प्रसाद और अन्य पूजन सामग्री रखने के लिए उपयोग करते हैं, शुद्धता और स्थायित्व का प्रतीक माना जाता है। सूप में ठेकुआ, फल, और पूजा की अन्य सामग्रियाँ रखकर सूर्य देवता और छठी मैया को अर्पित की जाती हैं। गन्ना, जो शक्ति और समृद्धि का प्रतीक है, छठ पूजा के दौरान विशेष रूप से उपयोग होता है। गन्ने की जोड़ी पूजा स्थल पर छठी मैया के प्रतिरूप के रूप में स्थापित की जाती है और इसे प्रसाद के रूप में भी अर्पित किया जाता है। बांस और गन्ने का उपयोग पर्यावरण के प्रति श्रद्धा और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का संदेश भी देता है।
छठ पूजा की तैयारियाँ :
छठ पूजा की तैयारियाँ कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती हैं। महिलाएँ अपने हाथों से ठेकुआ, कसार और अन्य प्रसाद तैयार करती हैं। व्रत करने वाले व्यक्ति शुद्ध कपड़े पहनते हैं और पूजा स्थल को विशेष रूप से सजाया जाता है। साथ ही, पूजा में उपयोग होने वाले बांस के सूप, दौरा और गन्ने की सजावट का भी विशेष महत्व होता है।
डिजिटल युग में छठ पूजा :
डिजिटल युग में भी छठ पूजा की महिमा कम नहीं हुई है। लोग सोशल मीडिया पर छठ पूजा की शुभकामनाएँ भेजते हैं और ऑनलाइन लाइव स्ट्रीमिंग के माध्यम से घाटों की आरती और पूजा का प्रसारण देखते हैं। इससे उन भक्तों को भी इस पर्व से जुड़ने का मौका मिलता है जो अपने गांव शहर से दूर देश-विदेश में रहते हैं।
छठ पूजा 2024 : तिथियाँ और शुभ मुहूर्त –
इस वर्ष छठ पूजा 5 नवंबर 2024 से 8 नवंबर 2024 तक मनाया जा रहा है। नहाय-खाय 5 नवंबर को, खरना 6 नवंबर को, संध्या अर्घ्य 7 नवंबर को और उषा अर्घ्य 8 नवंबर को होगा। शुभ मुहूर्त में सूर्य को अर्घ्य देना व्रतियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसलिए सही समय पर पूजा का विशेष ध्यान रखा जाता है।
छठ पूजा, आस्था और समर्पण का पर्व, भारतीय संस्कृति का अद्वितीय उदाहरण है। यह पर्व न केवल सूर्य देवता और छठी मैया की आराधना का माध्यम है, बल्कि जीवन में अनुशासन, शुद्धता और सामूहिकता की भावना को भी प्रबल करता है। चार दिनों तक चलने वाला यह महापर्व व्रतियों के आत्मसंयम और प्रकृति के प्रति उनकी श्रद्धा का प्रतीक है। डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रती अपने जीवन में सुख, समृद्धि और संतुलन की कामना करते हैं। छठ पूजा के माध्यम से हमें यह सीख मिलती है कि प्रकृति और जीवन के हर पहलू का सम्मान और संरक्षण करना चाहिए। इस पर्व की समाप्ति के बाद भी इसकी पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा हमारे जीवन में बनी रहती है।